- सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 17 अक्टूबर 2024 को फैसला देते हुए कहा कि नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6-A पूरी तरह से संवैधानिक है तथा भाईचारे के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है| 
- पीठ ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूह की मौजूदगी मात्र से स्थानीय आबादी के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है| 
- यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का 4 -1 के बहुमत से आया| 
संवैधानिक पीठ-
- इस मामले में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ थी, जिसमें निम्न न्यायाधीश थे- 
- मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ 
- न्यायाधीश M M सुद्रेश 
- न्यायाधीश सूर्यकांत 
- न्यायाधीश मनोज मिश्रा 
- न्यायाधीश J B पारदीवाला 
- इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश M M सुद्रेश, न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायाधीश मनोज मिश्रा ने पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि न्यायाधीश J B पारदीवाला ने धारा 6-A को असंवैधानिक करार दिया| 
धारा 6-A क्या है-
- नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6-A भारतीय मूल के उन विदेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता की इजाजत देती है, जो 1 जनवरी 1966 के बाद, लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम में आए थे| 
- यह प्रावधान 1985 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन करके डाला गया था| 
- यह संशोधन 1985 में असम समझौते के बाद किया गया था| 
- धारा में प्रावधान- 
- भारतीय मूल के वे व्यक्ति जो 1 जनवरी 1966 से पहले असम राज्य में प्रवेश कर चुके थे तथा तब से भारत के सामान्य रूप से निवासी हैं, भारत के नागरिक होंगे| 
- 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम आए लोग भारतीय नागरिकता के लिए पंजीयन करा सकेंगे, लेकिन उन्हें पहले 10 वर्ष तक वोटिंग का अधिकार नहीं मिलेगा| 
- 25 मार्च 1971 के बाद आए विदेशियों की पहचान करके निष्कासित किया जा सकता है| 
असम समझौता-
- यह समझौता असम राज्य में विदेशियों की पहचान के लिए हुआ था| 
- यह समझौता भारत सरकार (राजीव गांधी सरकार) व असम आंदोलन के उन नेताओं (ऑल असम स्टूडेंट यूनियन AASU) के बीच हुआ, जो बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को हटाने को लेकर 6 साल से आंदोलन कर रहे थे| 
- असम समझौते में बीच का रास्ता अपनाते हुए तय किया गया कि- 
- 1 जनवरी 1966 से पहले असम में पहुंचे लोगों को भारतीय नागरिक मान लिया जाएगा| 
- 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम आए लोग भारतीय नागरिकता के लिए पंजीयन करा सकेंगे, लेकिन उन्हें पहले 10 वर्ष तक वोटिंग का अधिकार नहीं मिलेगा| 
- 25 मार्च 1971 के बाद आए विदेशियों की पहचान करके निष्कासित किया जा सकता है| 
क्या है मामला (याचिका में धारा 6 A को चुनौती)-
- असमिया अस्मिता की बात करने वाले संगठनों (असम पब्लिक वर्क्स, असम संयुक्त महासंघ जैसे संगठनो) ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है| 
- याचिका में कहा गया कि- 
- धारा 6-A भेदभावपूर्ण है तथा असम के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन करती है| 
- असम में नागरिकता के लिए अलग कट ऑफ तिथि भेदभावपूर्ण है, अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है| 
- बांग्लादेश से शरणार्थियों के आने से असम की जनसांख्यिकीय संतुलन पर असर पड़ा है, तथा वे अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन गए हैं| 
- धारा 6-A असम राज्य के मूल निवासियों की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है| 
- अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन 
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय-
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों के बहुमत ने निर्णय दिया कि- 
- धारा 6- A को बांग्लादेश की युद्ध की पृष्ठभूमि में देखा जाए, इसके प्रावधान सही थे| 
- संसद के पास प्रावधान लागू करने की विधायी क्षमता थी| (अनुच्छेद 11) 
- धारा 6-A को स्थानीय आबादी की सुरक्षा की जरूरत के साथ मानवीय चिताओं को संतुलित करने के लिए लागू किया गया| 
- कट ऑफ तारीख 25 मार्च 1971 रखना तर्कसंगत था, क्योंकि इसी तारीख को बांग्लादेश मुक्ति युद्ध समाप्त हुआ था| 
- असम को बांग्लादेश के साथ बड़ी सीमा साझा करना वाले अन्य राज्यों से अलग करना तर्कसंगत था, क्योंकि असम की स्थानीय आबादी में प्रवासियों का प्रतिशत अन्य सीमावर्ती राज्यों के मुकाबले ज्यादा था| 
- धारा 6-A न तो ज्यादा, न ही कम समावेशी है| 
- किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी का मतलब यह नहीं है, कि संविधान के अनुच्छेद 29(1) के मुताबिक भाषाई व सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है| 
- धारा 6-A को समाप्त करने से कई वर्तमान निवासी राज्यविहीन हो सकते हैं| 
धारा 6- B-
- नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करके धारा 6-B मोदी सरकार द्वारा 2019 में जोड़ी गयी|  
- धारा 6-B के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश,और अफगानिस्तान से जो भी हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन प्रवासी भारत आए हैं, उन्हें भारत सरकार नागरिकता प्रदान करेगी|  
Note- नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6-A केवल असम के लिए है, जबकि धारा 6-B पूरे देश के लिए प्रभावी है|
नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करके धारा 6-B मोदी सरकार द्वारा 2019 में जोड़ी गयी|
धारा 6-B के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश,और अफगानिस्तान से जो भी हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन प्रवासी भारत आए हैं, उन्हें भारत सरकार नागरिकता प्रदान करेगी|
भारत में नागरिकता-
- संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता के बारे में वर्णन है| 
- इसमें संविधान के लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) नागरिक बने व्यक्तियों के बारे में उल्लेख है| 
- 26 जनवरी 1950 के बाद नागरिकता के बारे में उपबंध संसद विधि बनाकर निर्धारित कर सकती है| 
- इसके लिए संसद ने नागरिकता अधिनियम 1955 बनाया जिसमें 1986, 1992, 2003, 2005 मे संशोधन किया 
- नागरिकता का अर्थ- 
- किसी भी देश (राज्य) में दो तरह के लोग रहते हैं- नागरिक और विदेशी| 
- नागरिकों को सभी सिविल और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं| 
- विदेशियों को यह सभी अधिकार प्राप्त नहीं होते| 
- केवल नागरिकों को मिले अधिकार- 
- मौलिक अधिकार- अनुच्छेद 15,16, 19, 29, 30 
- लोकसभा व राज्य विधानसभा के निर्वाचन के लिए मत देने का अधिकार (अनुच्छेद-326) 
- संसद का सदस्य होने का अधिकार (अनुच्छेद- 84) 
- राज्य के विधानमंडल का सदस्य होने का अधिकार (अनुच्छेद 173) 
निम्न पदों के लिए केवल नागरिक ही पात्र है -
- राष्ट्रपति [अनु 58(1) (क)] 
- उपराष्ट्रपति का पद [अनु 66 (3) (क)] 
- उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश [अनु. 124 (3)] 
- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश [अनु. 217 (2)] 
- महान्यायवादी [अनुच्छेद 76 (2)] 
- राज्यपाल [अनु.157] 
- महाधिवक्ता [अनु.165] 
अनुच्छेद 5 संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता-
- जो भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था, या 
- जिसके माता या पिता में से कोई भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था, या 
- जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम 5 वर्ष तक भारत के राज्य क्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है भारत का नागरिक होगा| 
व्याख्या-
- अनुच्छेद-5 सविधान के प्रारंभ (26 जनवरी 1950) पर भारतीय नागरिकता के बारे में बताता है| 
- सविधान प्रारंभ पर एक व्यक्ति जो भारत में निवास करता है, निम्न में से एक शर्त पूरी करने पर भारत का नागरिक होगा- 
(क) जो भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था| या
(ख) जिसके माता या पिता में से कोई भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था| या
(ग) जो संविधान लागू होने से ठीक पहले कम से कम 5 वर्ष तक भारत के राज्य क्षेत्र में मामूली तौर पर निवासी रहा है|
कादर अली बनाम असम राज्य 1972-
- किसी भारतीय का 1 मार्च 1947 से 26 जनवरी 1950 की कालावधि में नौकरी के लिए पाकिस्तान में प्रवजन का आशय नौकरी करके पाकिस्तान में स्थायी रूप से बसना है| अतः अनुच्छेद 5 के अधीन नागरिकता की शर्तें पूरी करते हुए भी ऐसा व्यक्ति अनुच्छेद 7 के अर्थों के अंतर्गत भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा| 
नगीना देवी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2010 पटना-
- अधिवास के आधार पर नागरिकता के लिए यह आवश्यक है कि संविधान के लागू होने के समय व्यक्ति का भारत में अधिवास रहा हो| 
अनुच्छेद- 6 पाकिस्तान से भारत को प्रवजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार-
- यदि वह अथवा उसके माता या पिता में से कोई अथवा उसके पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई भारत शासन अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था, और 
- (1) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है, जिसने 19 जुलाई 1948 से पहले इस प्रकार प्रवजन किया है तब यदि वह अपने प्रवजन की तारीख से भारत के राज्य क्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है, या 
(2) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई 1948 को या उसके पश्चात इस प्रकार प्रवजन किया है तब यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा विहित प्रारूप में और रीति से उसके द्वारा संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे अधिकारी को, जिसे उस सरकार ने प्रयोजन के लिए नियुक्त किया है, आवेदन किए जाने पर उस अधिकारी द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है:
- परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम 6 मास भारत के राज्यक्षेत्र में निवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाएगा| 
व्याख्या
- अनुच्छेद 6 संविधान प्रारंभ पर पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों के लिए नागरिकता के प्रावधान करता है| 
- ऐसा व्यक्ति जिसका स्वयं, माता या पिता में कोई, दादा या दादी या नाना या नानी में कोई का अविभाजित भारत (भारत शासन अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत) में जन्म हुआ हो दो शर्तों पर भारत का नागरिक बन सकता है- 
- यदि वह 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आया था तथा आने की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है तो संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक समझा जाएगा| 
- यदि वह 19 जुलाई 1948 को या इसके बाद भारत आया हो व नागरिकता प्राप्ति के लिए पंजीकरण कराये, लेकिन पंजीकरण आवेदन के लिए कम से कम 6 माह तक (पंजीकरण आवेदन से पहले) भारत में निवास आवश्यक है| पंजीकृत किए जाने पर भारत का नागरिक समझा जाएगा| 
अनुच्छेद- 7 पाकिस्तान को प्रवजन (जाने वाले) करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार-
व्याख्या-
- यह अनुच्छेद पाकिस्तान को जाने वाले व्यक्तियों की नागरिकता के बारे में प्रावधान करता है| 
- इस अनुच्छेद अनुसार यदि व्यक्ति 1 मार्च 1947 के बाद भारत से पाकिस्तान चला जाता है, तो भारत का नागरिक नहीं रहेगा, चाहे अनुच्छेद 5 व अनुच्छेद 6 की शर्तें पूरी करता हो| 
- परंतु इस अनुच्छेद की कोई बात ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होगी जो पाकिस्तान जाने के पश्चात भारत में पुनर्वास के लिए या स्थाई रूप से लौटने के लिए किसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया हो| 
अनुच्छेद- 8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार- 
व्याख्या-
- यह अनुच्छेद भारत से बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के व्यक्तियों के नागरिकता अधिकार के बारे में प्रावधान करता है| 
- ऐसा व्यक्ति जिसका स्वयं या माता या पिता में कोई अथवा दादा या दादी में कोई या नाना-नानी में कोई एक का जन्म अविभाजित भारत (भारत शासन अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत) में हुआ हो तथा वह स्वयं भारत से बाहर रह रहा हो| संविधान प्रारंभ से पहले या बाद में पंजीकरण (कौसलीय प्रतिनिधि के पास) कराके भारत का नागरिक बन सकता है| 
अनुच्छेद- 9 विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का नागरिक न होना-
व्याख्या-
- यह अनुच्छेद दूसरे देश की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों के नागरिकता के प्रावधान करता है| 
- यदि किसी व्यक्ति ने दूसरे देश की नागरिकता स्वेच्छा से ग्रहण कर ली है तो वह अनुच्छेद 5, अनुच्छेद 6, अनुच्छेद 8, के आधार पर भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा| 
अनुच्छेद- 10 नागरिकता के अधिकारों का बना रहना-
व्याख्या-
- प्रत्येक व्यक्ति जो अनुच्छेद 5, 6, 7, 8, 9 के अंतर्गत भारत का नागरिक है या समझा जाता है, संसद के द्वारा बनायी गयी विधियों के अधीन रहते हुए ही भारत का नागरिक बना रहेगा| 
अनुच्छेद- 11 संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना-
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी|
व्याख्या-
- नागरिकता के अर्जन व समाप्ति के संबंध में कानून/ विधि बनाने का अधिकार संसद को है| 
- अनुच्छेद 5, 6, 7, 8, 9, 10 के उपबंध संसद की शक्ति (नागरिकता संबंधी) का अल्पीकरण नहीं करेंगे| 
नागरिकता अधिनियम- 1955
- यह अधिनियम नागरिकता की समाप्ति और नागरिकता के अर्जन के बारे में बताता है- 
- नागरिकता का अर्जन- नागरिकता की प्राप्ति के पांच आधार/ शर्तें हैं-
- जन्म से नागरिकता- 
- प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत में हुआ है (चाहे माता- पिता भारतीय न हो) तो वह भारत का नागरिक होगा| 
- 3 दिसंबर 2004 के बाद भारत में जन्मे व्यक्ति के माता-पिता दोनों या दोनों में से एक भारत का नागरिक हो तथा दूसरा अवैध प्रवासी न हो तब ही भारत का नागरिक माना जाएगा| 
- Note- भारत में पदस्थ विदेशी राजनयिक एवं शत्रु देश के बच्चों को भारत की नागरिकता अर्जन का अधिकार नहीं है| 
- वंश/ अवजनन के आधार पर नागरिकता- 
- 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हुआ व्यक्ति भी वंश के आधार पर भारत का नागरिक बन सकता है यदि उसके जन्म के समय माता या पिता में से कोई भी भारतीय हो| 
- पंजीकरण के द्वारा- 
- ऐसे भारतीय मूल के व्यक्ति जो भारत में मामूली तौर पर निवासी हो तथा 
- वे स्त्रियां जो भारत के किसी नागरिक से विवाह कर लेती हैं पंजीकरण के द्वारा भारतीय नागरिक बन सकते/ सकती है| 
- प्राकृतिक रूप से/ देशीयकरण के द्वारा- 
- ऐसा विदेशी व्यक्ति जो भारत में रहने का इच्छुक है तथा उस देश की नागरिकता त्यागता है तो वह आवेदन करके प्राकृतिक रूप से भारत का नागरिक बन सकता है| 
- राज्य क्षेत्र में मिल जाने पर नागरिकता- 
- कोई अन्य राज्य क्षेत्र भारत का भाग बन जाता है तो उस क्षेत्र के व्यक्तियों को संसद विधि बना कर भारत का नागरिक घोषित कर सकती हैं| 
- उदा- नागरिकता पांडिचेरी आदेश-1992 
- नागरिकता की समाप्ति
- नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार नागरिकता समाप्ति के तीन आधार है- 
- स्वैच्छिक त्याग- स्वेच्छा से पूर्ण आयु प्राप्त व्यक्ति भारत की नागरिकता त्याग सकता है| 
- बर्खास्तगी के द्वारा- जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता स्वेच्छा से ग्रहण कर लेता है तो उसकी नागरिकता बर्खास्त हो जायेगी| 
- वंचित करना- निम्न मामलों में किसी व्यक्ति को नागरिकता से वंचित किया जा सकता है- 
- नागरिकता फर्जी तरीके से प्राप्त कर लेता है| 
- संविधान के प्रति अनादर जताता है| 
- युद्ध के दौरान शत्रु को राष्ट्र विरोधी सूचना देता है| 
- भारत के बाहर 7 वर्ष से रह रहा हो (छात्रों पर लागू नहीं) 
- पंजीकरण कराने के 5 वर्ष के दौरान किसी दूसरे देश में 2 वर्ष की सजा हो गयी हो| 
Note - भारत में एकल नागरिकता अपनायी गयी है अर्थात भारतीय नागरिकता|

 
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