प्लेटो के अनुसार न्याय-
इस प्रकार प्लेटो न्याय के तीनों सिद्धांतों का खंडन करके रिपब्लिक में न्याय को सुकरात के माध्यम से समझाता है|
सुकरात के शब्दों में “न्याय प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में रहता है और यदि वह अपने कर्तव्य उचित ढंग से करता है तो उसका आचरण स्वयं उनकी न्यायप्रियता का परिचायक है|”
प्लेटो “न्याय मानव आत्मा की उचित व्यवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है| न्याय राज्य की प्राण वायु है|”
फॉस्टर “जिसे हम नैतिकता कहते हैं, वही प्लेटों के लिए न्याय हैं|”
बार्कर “नागरिक की स्वधर्म चेतना तथा सामाजिक जीवन में उसकी अभिव्यंजना ही राज्य का न्याय है|”
बार्कर “न्याय का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उस कर्तव्य का पालन करना, जो उसके प्रकृतिस्थ गुणो एवं सामाजिक स्थिति के अनुकूल है|”
कैटलिन “मेरा स्थान और उसके कर्तव्य यही न्याय है|”
क्वायरे “प्रत्येक नागरिक को उसके अनुकूल भूमिका और कार्य देना ही न्याय है|”
फॉस्टर “इन्होंने प्लेटों के सामाजिक न्याय के विचार को वास्तुकला की संज्ञा दी है|” या न्याय को ‘रचना प्रकल्पमुलक सिद्धांत’ (आर्किटेकटियन थ्योरी) कहा है|”
वोलिन “प्लेटो प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने राजनीतिक समाज को अलग-अलग भूमिकाओं की व्यवस्था माना है|”
सेबाइन “न्याय समाज का एकता सूत्र है, यह उन व्यक्तियों के परस्पर तालमेल का नाम है, जिनमें से प्रत्येक ने अपनी प्रकृति और शिक्षा-दीक्षा के अनुसार अपने कर्तव्य को चुन लिया है|” यह व्यक्तिगत धर्म भी है ,सामाजिक धर्म भी है|”
प्लेटो ने न्याय को दो रूपों में बांटा है-
व्यक्तिगत न्याय
सामाजिक न्याय
व्यक्तिगत न्याय-
इसको तीन आत्मा का सिद्धांत या आत्मा की तीन प्रवृत्तियों का सिद्धांत या Form of Triangle या त्रिभुज का विचार भी कहते है| प्लेटो ने व्यक्ति की आत्मा में तीन प्रवृत्तियों का निवास माना है-
ज्ञान/ विवेक /बुद्धि (Wisdom)
साहस (Courage)
संयम (Temperance)
जब आत्मा की ये तीनों प्रवृतियां व्यक्ति में उचित अनुपात में रहती है, तो व्यक्तिगत न्याय की पालना होती है अर्थात इन तीनों प्रवृत्तियों में संतुलन, समन्वय, सामंजस्य का होना ही व्यक्तिगत न्याय है|
बार्कर के शब्दों में “व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रत्येक भाग अपने-अपने कार्यों का उचित संपादन करें|”
सामाजिक न्याय या राज्य का न्याय-
प्लेटो के अनुसार राज्य (समाज) व्यक्ति का वृहद रूप होता है, तथा प्लेटो व्यक्ति को राज्य की चेतना के लिए आवश्यक तत्व मानता है|
सामाजिक न्याय के संबंध में प्लेटो का तीन वर्गों का सिद्धांत है| इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में इन तीनों तत्वों में एक तत्व की प्रधानता होती है| प्रधान तत्व या प्रवृत्ति के आधार पर समाज में तीन वर्गों की स्थापना होती है तथा प्रत्येक वर्ग का अपना विशेष कार्य होता है
प्रत्येक वर्ग द्वारा अपना-अपना कार्य करना तथा दूसरे वर्ग के कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करना सामाजिक न्याय होता है| (कार्य विशिष्टीकरण व अहस्तक्षेप)
समाज या राज्य के संदर्भ में न्याय का अर्थ यह होगा कि उत्पादक वर्ग को सैनिक वर्ग से संरक्षण प्राप्त हो और दार्शनिक वर्ग से मार्गदर्शन प्राप्त हो|
सेबाइन ने अपनी पुस्तक राजनीतिक सिद्धांत का इतिहास (A History of political theory) 1937 में लिखा है कि “प्लेटो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना-अपना हक दिलाना न्याय है|”
C.L वेपर इसे उपयुक्त प्रावधान (उत्पादक वर्ग), उपयुक्त संरक्षण (सैनिक वर्ग), उपयुक्त नेतृत्व (दार्शनिक वर्ग) का नाम देता है|
समुदायवादी विचारक मैंकेटायर का विचार है कि न्यायपूर्ण व्यक्ति व न्यायपूर्ण राज्य खुशहाल क्यों है? इस संदर्भ में प्लेटो ने तीन तर्क दिए है-
न्यायपूर्ण व्यक्ति अपनी इच्छाएं सीमित रखता है|
सिर्फ दार्शनिक ही तर्क व इच्छा से जनित सुखों में अंतर कर सकता है|
बुद्धि से जनित खुशियां ही सच्ची होती है|
जावेट “न्याय व्यक्तिगत जीवन के उस प्रकार का नाम है, जहां आत्मा का हर अंग अपना स्वयं का कार्य करता है, राज्य का वह जीवन है जहां प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक वर्ग अपने विशिष्ट कार्यों को संपन्न करता है|”
निसबेट (Nisbet) “प्लेटो के लिए समस्या (जो दो हजार साल बाद रूसो के लिए भी थी) यह थी कि व्यक्ति की निरपेक्ष आजादी के साथ राज्य के निरपेक्ष न्याय का समन्वय कैसे किया जाय|”
प्लेटो के न्याय सिद्धांत की विशेषताएं-
प्लेटो का न्याय आत्मा का आंतरिक गुण या प्राकृतिक या आंतरिक तत्व है, न कि तीनों न्याय सिद्धांतों की तरह बाह्य या कृत्रिम|
प्लेटो की न्याय संबंधी धारणा वैधानिक नहीं है बल्कि नैतिक और सर्वव्यापी है|
प्लेटो का न्याय संतुलनकारी धारणा है|
प्लेटो का न्याय सिद्धांत अहस्तक्षेप सिद्धांत पर आधारित है|
प्लेटो का न्याय सिद्धांत कार्य विशेषीकरण पर आधारित है|
प्लेटो का न्याय आदर्श राज्य की आधारशिला है तथा आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना दार्शनिक राजा द्वारा की गई है|
प्लेटो का न्याय सिद्धांत अति व्यक्तिवाद का विरोधी है|
सावयव एकता/ प्राकृतिक एकता- प्लेटो के न्याय सिद्धांत में व्यक्ति व राज्य में कोई विरोध नहीं है| इसमें व्यक्ति राज्य के लिए है, राज्य के प्रति व्यक्ति के कर्तव्य ही है, अधिकार नहीं, राज्य एक साध्य है व्यक्ति साधन| जैसा कि प्लेटो ने लिखा है कि “नागरिकों में कर्तव्य भावना ही राज्य का न्याय सिद्धांत है|”
न्याय प्राप्ति का माध्यम शिक्षा है|
प्लेटो का सामाजिक न्याय एकता का सिद्धांत है, अर्थात तीनों वर्गों में एकता की स्थापना करना|
प्लेटो का न्याय सिद्धांत मनोवैज्ञानिक तत्व के लिए है|
प्लेटो के न्याय सिद्धांत की आलोचना-
प्लेटो का न्याय आधुनिक न्याय की तरह वैधानिक धारणा का न होना| जैसा कि बार्कर लिखता है कि “प्लेटो का न्याय वस्तुतः न्याय नहीं है, वह केवल मनुष्यों को अपने कर्तव्यों तक सीमित करने वाली भावना मात्रा है, कोई ठोस कानून नहीं है|” विलियम बायड के शब्दों में “उसने नैतिक कर्तव्य और वैधानिक दायित्व के बीच की सीमा को भी भुला दिया है|”
प्लेटो का न्याय सिद्धांत अव्यवहारिक है|
प्लेटो का न्याय व्यक्ति को पूर्णतया राज्य के अधीन करके व्यक्ति को निष्क्रिय तथा सीमित कर देता है|
अरस्तु “प्लेटो का न्याय अत्यधिक एकीकरण एवं अत्याधिक पृथक्करण के बीच समावेश करने के प्रयत्न में पेचीदा सिद्धांत बन गया है|”
प्रोफेसर सेबाइन “प्लेटो की न्याय कल्पना जड़, आत्मपरक, निष्क्रिय, अनैतिक, अव्यावहारिक एवं अविश्वसनीय है|”
दार्शनिक वर्ग को अत्यंत शक्ति प्रदान करना अनुचित है, क्योंकि इससे वे निरंकुश बन जाते है|
न्याय का सिद्धांत प्लेटों को फासीवादी और अधिनायकवादी ही बना देता है|
झेनोफोन तथा जॉन बोवले “प्लेटो का न्याय सिद्धांत अप्रजातांत्रिक है|”
अधिकारों एवं दंड की व्यवस्था का न होना- प्लेटो तीनों वर्गों के केवल कर्तव्यों की ही बात करता है, अधिकारों की नहीं| साथ ही यदि कोई वर्ग दूसरे वर्ग के कार्यों में हस्तक्षेप करें तो क्या दंड होगा इसकी व्यवस्था नहीं करता है|
कार्ल पापर प्लेटो के न्याय सिद्धांत को सर्वासत्ताधिकारवाद का जन्मदाता कहता है तथा परिवर्तन और सुधार का विरोधी कहता है|
कार्ल पापर के शब्दों में “प्लेटो के न्याय की परिभाषा के पीछे मौलिक रूप से सर्वसत्ताधिकारीवादी वर्ग शासक की मांग एवं उसे कार्यान्वित करने के उसके निर्णय छिपे हुए है|”
इन सब आलोचनाओं के होते हुए भी प्लेटो न्याय सिद्धांत के माध्यम से समाज में एकता की स्थापना करता है|
बार्कर “न्याय रिपब्लिक की आधारशिला है और रिपब्लिक न्याय की मूल अवधारणा का संस्थागत स्वरूप है|”
प्लेटो के समर्थक विद्वान-
प्लेटो की विरोधी विद्वान-
तीन वर्ग व तीन आत्माओं के सिद्धांतों की आलोचना-
अंबेडकर “प्लेटो के तीन वर्गों का वर्गीकरण भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था व जाति व्यवस्था की तरह श्रेणीकरण, ऊंच-नीच, शोषण को बढ़ावा देता है|”
सेबाइन “प्लेटो का वर्गीकरण प्राचीन भारत के कठोर जातीय वर्गीकरण से मिलता जुलता था, लेकिन प्लेटों के वर्ग, जातियां नहीं थी क्योंकि उनकी सदस्यता उत्तराधिकार में नहीं मिलती थी|”
न्याय- आंगिक व रचना प्रकल्पमुलक सिद्धांत
M.B फॉस्टर ने अपनी पुस्तक Master of Political Thought- Plato to Machiavelli में प्लेटों के न्याय सिद्धांत को रचनाप्रकल्पमुलक बताया है|
आंगिक (Organic) जिस प्रकार शरीर के सभी अंग आपस में जुड़े रहते हैं, उसी प्रकार सभी सद्गुण भी आपस में जुड़े रहते हैं और न्याय उन्हें जोड़ने का कार्य करता है|
रचना प्रकल्पमुलक (Architectonic)- न्याय एक वास्तुकार की तरह होता है जो विवेक, साहस, संयम के मध्य उचित समन्वय व संतुलन बनाए रखता है|
इस प्रकार न्याय समन्वयकारी व नियंत्रणकारी है|
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