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रिपब्लिक में न्याय सिद्धांत / Republic mai nayay siddhant/ Theory of Justice in Republic || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     रिपब्लिक में न्याय सिद्धांत (Theory of Justice in Republic)

    • प्लेटो के आदर्श राज्य के चार प्रमुख गुण हैं- बुद्धि, साहस, अनुशासन और न्याय| 

    • न्याय का सिद्धांत प्लेटो के राजनीतिक चिंतन का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है|

    • प्लेटो के ग्रंथ Republic का दूसरा नाम Concerning of Justice है, जिसका अर्थ है ‘न्याय से संबंधित’|

    • ग्रीक (यूनानी) भाषा में न्याय का पर्यायवाची शब्द Dikaiosyne (डिकायोसिनी) है, जिसका अर्थ है ‘न्याय प्रबंध’|

    • प्लेटो की न्याय की अवधारणा आधुनिक न्याय की तरह कानूनी नहीं है, बल्कि नैतिक है| प्लेटो के अनुसार न्याय Righteousness (नैतिकता या धार्मिकता) है|

    • प्लेटो के अनुसार न्याय अच्छाई का विचार (Form of the good) है|

    • न्याय का सिद्धांत या सही व्यवहार या नैतिकता रिपब्लिक का केंद्रीय प्रश्न है| प्लेटो के अनुसार न्याय एक ऐसी औषधि है, जो समाज से अशांति, अव्यवस्था, कर्तव्य विमुखता तथा बुद्धिहीनता आदि व्याधियों को (जो एक आदर्श समाज के स्वास्थ्य के लिए घातक है) को दूर करती है|

    • प्लेटो ने जिस आदर्श राज्य की रूपरेखा तैयार की, उसका प्रमुख आधार न्याय ही है|

    • प्लेटो अपने आदर्श राज्य को एक ऐसे न्याय के सिद्धांत पर आधारित करना चाहता था, जो राज्य को एकता प्रदान करें, नागरिकों को घोर व्यक्तिवाद के प्रभाव से बचाएं, कार्यों के विशिष्टीकरण द्वारा असक्षमता को दूर करें तथा राज्य को स्थिरता प्रदान करें|

    • प्लेटो के न्याय सिद्धांत का उद्देश्य उन सभी न्याय की झूठे विचारों को समाप्त करना था, जिन्हें सोफिस्टो ने फैला रखा था तथा सच्ची न्याय की धारणा को प्रतिष्ठित करना था|

    • बार्कर “चाहे प्लेटो सोफिस्ट वर्ग की धारणाओं का विरोध कर रहा हो या समाज की विद्यमान व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयत्नशील हो, न्याय प्लेटो के विचार का मूलाधार रहा है|”

    • ईबनस्टीन “प्लेटो के न्याय संबंधी विवेचन में उसके राजनीतिक दर्शन के समस्त तत्व शामिल हैं|”

    • गैटल “न्याय की धारणा प्लेटो के राजनीति दर्शन की पराकाष्ठा है|”

    • बार्कर “प्लेटो का न्याय एक कानूनी विषय नहीं है, न ही कानूनी अधिकार व कर्तव्यों की बाहरी योजना से संबंधित है| यह कानून के क्षेत्र में नहीं आता है, अपितु इसका संबंध सामाजिक नैतिकता से है|”

    • रिपब्लिक का आरंभ व अंत न्याय के वास्तविक स्वरूप की मीमांसा से होता है|

    • प्लेटो न्याय की स्थापना हेतु आदर्श राज्य की व्यवस्था करता है, साम्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है तथा नई शिक्षा व्यवस्था द्वारा ज्ञानी, विशेषज्ञ, सुशिक्षित दार्शनिक शासक के निर्माण करने की चर्चा करता है|


    प्लेटो के न्याय व आधुनिक न्याय में अंतर है, जिसके संबंध में कुछ विद्वानों के मत निम्न है-

    • सेबाइन “रिपब्लिक में राज्य के सिद्धांत की पराकाष्ठा न्याय सम्बन्धी सिद्धांत में है| न्याय वह सूत्र है जो राज्य को बांधे रखता है|” 

    • M.B फोस्टर “न्याय शब्द ग्रीक शब्द डिकायोसिनी (dikaiosyne) का अनुवाद है| इस डिकायोसिनी शब्द का क्षेत्र अंग्रेजी के न्याय (Justice) शब्द से अधिक व्यापक है| प्लेटो के लिए न्याय का अर्थ नैतिकता है| यह न्याय का रचनाप्रकल्पमुलक सिद्धांत है|”


    • प्लेटो ने अपने ग्रंथ रिपब्लिक में न्याय के बारे में इतना विस्तृत विवेचन किया है कि रिपब्लिक में अनेक शाखाओं का समावेश हो गया|

    • विल दुरांतो/डयूरेंट ने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ फिलॉसोफी’(1926) में लिखा है कि “रिपब्लिक अपने आप में पूर्ण प्रबंध है, जिसे प्लेटो ने एक ग्रंथ का रूप दे दिया है| इसमें हमें उनकी तत्वमीमांसा, ईश्वरमीमांसा, नीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, कला सिद्धांत के एक साथ दर्शन होते हैं|”


    • न्याय को परिभाषित करते हुए प्लेटो लिखता है कि “प्रत्येक व्यक्ति को वह उपलब्ध होना चाहिए, जो उसको प्राप्य है|” अर्थात व्यक्ति को उसकी योग्यता व क्षमता के अनुसार प्राप्त होना चाहिए|


    • प्लेटो न्याय की अवधारणा का प्रतिपादन करने से पहले अपने समय प्रचालित न्याय से संबंधित 3 सिद्धांतों का खंडन करता है|

    • प्लेटो निम्न तीन न्याय सिद्धांतों का खंडन करता है-

    1. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत

    2. न्याय का उग्रवादी सिद्धांत

    3. न्याय का व्यवहारवादी सिद्धांत

    •  ये तीनों सिद्धांत सोफिस्ट को देन थे| अर्थात प्लेटो सोफीस्टो का विरोधी था| 


    सोफीस्ट कौन? 

    • 500 ई. पूर्व जब एथेंस में लोकतंत्र (पेराक्लीज़ द्वारा) की स्थापना हुई, तब वहां विचार-स्वतंत्रता के कारण सोफिस्ट विचारक पैदा हुए|

    • सोफिस्ट भ्रमणशील शिक्षक थे, जिन्हें आधे पत्रकार, आधे प्रोफेसर व विचारक कहा जाता था|

    • ये गैर यूनानी थे, जिन्हें मेटिक्स कहा जाता था| यूनानी स्वयं को हेलेनिक कहते थे|

    • सोफिस्ट सुकरातवादी परंपरा का विरोधी स्कूल था| 

    • इन्हें सामान्यत: जनतंत्र और सामाजिक परिवर्तन का संस्थापक माना गया है| 

    • सोफिस्ट प्रोफेसर धन के बदले एथेंस के युवाओं को वाकपटुता व तर्क विद्या सिखाते थे|

    • प्रोटागोरस, जार्जियास व थ्रेसिमेक्स आदि प्रसिद्ध सोफिस्ट है|

    • सोफिस्ट व्यक्तिवादी, मानवतावादी, भौतिकवादी, शंकावादी, अनिश्वरवादी व सापेक्षवादी थे|

    • सोफिस्ट राज्य को एक कृत्रिम संस्था मानते हैं|

    • ये कानून व न्याय को राज्य की देन मानते है|


    • Note- 

    • प्लेटो इनके न्याय को न्याय नहीं मानता है, बल्कि राय व विश्वास मानता है|

    • प्लेटो के मत में “सोफिस्ट बिकनेलायक आध्यात्मिक सामानों के शिक्षक हैं|”

    • प्लेटो ने सोफिस्टो के द्वारा परम सत्य की पूर्ण उपेक्षा तथा फीस लेकर ज्ञान देने के तरीके की आलोचना की|

    • प्लेटो ने सोफिस्टो की वक्तृता और बौद्धिक कवायत के लिए आलोचना की| प्लेटो के मत में सोफिस्ट छात्रों को तर्कों के जरिए नहीं, बल्कि बोले जाने वाले शब्दों की ताकत से जीवन की सलाह देते हैं|



    1. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत (Traditional Theory of Justice)-


    • न्याय की चर्चा एक संपन्न और कुलीन व्यक्ति सेफालस के घर होती है, जिसमें सुकरात प्रमुख वक्ता है, जो प्लेटों के विचारों का प्रतिनिधि है| इसके अलावा इस चर्चा में पोलीमार्कस, थ्रेसिमेक्स, ग्लॉकान, एडीमेंटस भी भाग लेते हैं| 

    • इसकी शुरुआत अच्छाई का विचार समझने की कोशिश से होती है और यह दर्शाता है कि संपूर्ण आत्मा कैसे विकसित होती है|

    • इसकी शुरुआत सुकरात और सेफालस के बीच वृद्धावस्था और स्वास्थ्य संबंधी विवाद से शुरू होती है| (वृद्ध और खुशहाल)

    • सेफालस कहता है कि धन अपने में खुशी नहीं देता, बल्कि वह सुविधाएं हासिल करता है, जिससे जीवन आसान बनता है इससे अच्छा और नैतिक रूप से सही जीवन विकसित होता है| 


    • न्याय के परंपरावादी सिद्धांत का वृद्ध व्यापारी सेफाल्स तथा उसके पुत्र पोलीमार्कस द्वारा प्रतिपादन किया गया है|

    • सेफाल्स के अनुसार न्याय- सेफाल्स व्यापारी वर्ग की प्राचीन परंपरागत नैतिकता का प्रतिनिधि था| इसके अनुसार न्याय “सत्य बोलना एवं अपना कर्ज चुकाना है|”

    • अर्थात अपने संकल्प तथा वचन को पूरा करना, अपने वक्तव्यो व कर्तव्यों का पालन करना तथा देवताओं व मनुष्यों के प्रति अपने ऋण को चुकाना, जिससे जो कुछ लिया है उसको वापस लौटाना न्याय है|

    • पोलीमार्कस के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति को वह देना जो उसके लिए उचित है तथा मित्र के साथ भलाई तथा शत्रु के साथ बुराई करना ही सच्चा न्याय हैं|”

    • अर्थात न्याय एक कला है जो भलाई एवं बुराई करने की दो विरोधी क्षमताएं रखती हैं|


    • प्लेटो द्वारा परंपरावादी सिद्धांत का खंडन

    1. न्याय एक कला नहीं है क्योंकि न्याय सिर्फ भलाई ही करता है, बुराई नहीं| ना ही कला की तरह न्याय का अर्जन किया जा सकता है| न्याय तो आत्मा का गुण है|

    2. मित्र एवं शत्रु को पहचानना कठिन है|

    3. न्याय किसी व्यक्ति से जो लिया है उसको वापस लौटाना भी नहीं है क्योंकि पागल व्यक्ति होने पर उसको हथियार लौटाना न्याय नहीं है|

    4. शत्रु के साथ बुराई करने पर वह और बुरा हो जाता है अतः यह भी न्याय नहीं है|

    5. न्याय का परंपरावादी सिद्धांत व्यक्तिवादी है जबकि न्याय सामाजिक, व्यष्टिवादी है|

    6. परंपरावादी सिद्धांत के अनुसार न्याय देश-काल एवं परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है जबकि सच्चा न्याय तो सार्वदेशिक एवं सर्वकालिक होता है|


    1. न्याय का उग्रवादी सिद्धांत- 

    • अन्य नाम- आमूल परिवर्तनवादी सिद्धांत, क्रांतिकारी सिद्धांत

    • प्रतिपादक- थ्रेसिमेक्स


    • थ्रेसिमेक्स के अनुसार-

    1. “न्याय शक्तिशाली का हित है|” अर्थात जिसकी लाठी, उसकी भैंस और राजा करे सो न्याय

    2. “अन्याय न्याय से अच्छा है|”


    1. इसके अनुसार विभिन्न प्रकार की सरकारें (जनतंत्री, कुलीनतंत्री, आततायीतंत्री) आदि जो कानून बनाती है उसका लक्ष्य स्वयं का हितसाधन होता है| सरकार इन कानूनों को न्याय की संज्ञा दे देती है तथा जो इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं उसे अन्यायी व अपराधी घोषित करके दंडित करती है| अतः ‘न्याय शक्तिशाली का हित है|’

    2. प्रत्येक व्यक्ति अपना हित चाहता है लेकिन न्याय का मतलब शक्तिशाली का हित है अतः न्यायी व्यक्ति को सुख नहीं मिल सकता है| इसके बजाय अन्यायी व्यक्ति ही अपने हित की पूर्ति कर सकता है| अतः ‘अन्याय करना न्याय से बेहतर है|’


    • प्लेटो द्वारा उग्रवादी सिद्धांत का खंडन-      

    1. सुकरात कहता है कि शासक भी गलती कर सकते हैं और हो सकता है कि वह अपने हित न पहचान पाए और अपने हितों के विरुद्ध कानून का निर्माण करें| 

    2. प्लेटो के अनुसार शासन एक कला है तथा शासक ‘कलाकार’ होता है| कला का उद्देश्य पदार्थों के दोषो को दूर करना है न कि कलाकार की स्वार्थसिद्धि करना| इस तरह न्याय शक्तिशाली का हित नहीं होता है| आदर्श शासक जनकल्याण के लिए कानून बनाता है, न कि अपने स्वार्थसिद्धि के लिए|

    3. अन्याय न्याय से बेहतर है प्लेटो इसको भी स्वीकार नहीं करते है| प्लेटो के अनुसार न्यायी व्यक्ति अन्यायी व्यक्ति की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान, शक्तिशाली एवं सुखी होता है|

    4. प्लेटो के अनुसार थ्रेसिमेक्स का सिद्धांत व्यक्तिवादी विचारधारा पर आधारित है, जबकि न्याय व्यक्ति कि नही समष्टि की वस्तु है|


    Note- थ्रेसिमेक्स का यह सिद्धांत कुछ अंशों में हॉब्स और स्पिनोजा की न्याय संबंधी अवधारणा से मिलता है तथा मार्क्स के सिद्धांत से समानता रखता है|

    • फोस्टर “थ्रेसिमेक्स का न्याय का यह सिद्धांत मार्क्स के दर्शन के अंतर्गत पुनर्जीवित हुआ है|”


    1. न्याय का व्यवहारवादी सिद्धांत– 

    • अन्य नाम- यथार्थवादी सिद्धांत, कार्य-कारण सिद्धांत, अनुबंधवादी सिद्धांत

    • प्रतिपादक- ग्लॉकान व एडीमेंटस या अडायमेंटस (ये दोनों प्लेटों के भाई थे|)


    इनके अनुसार “न्याय भय का शिशु है, तथा कमजोर (दुर्बल वर्ग) की आवश्यकता है|”

    • ग्लॉकान कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वार्थी होता है तथा अपना हित चाहता है, लेकिन दुर्बल वर्ग जिसका बहुमत है वह अधिक कष्ट उठाता है अतः उन्होंने आपस में समझौता किया कि न तो स्वयं अन्याय करेंगे तथा न ही किसी को करने देंगे| इससे कानूनों का जन्म होता है|

    • ग्लॉकान की यह धारणा हॉब्स के सामाजिक समझौते की अवधारणा से मिलती है|

    • न्याय निर्बल की शक्तिशाली से रक्षा करता है अतः ग्लॉकान कहता है कि न्याय कमजोर की आवश्यकता है|

    • न्याय कानून द्वारा स्थापित किया जाता है तथा कानून का पालन दंड के डर से किया जाता है, अतः ग्लॉकान के अनुसार न्याय भय का शिशु है|


    Note- ग्लॉकान न्याय को कृत्रिम मानता है तथा निर्बल व्यक्ति को न्याय को जन्म देने वाला मानता है|

    • बार्कर “थ्रेसिमेक्स न्याय को बलशाली एवं शक्तिशाली व्यक्तियों का हित बताता है| ग्लॉकान उसे भय की भावना में स्थापित कर दुर्बलो के लाभ के लिए एक आवश्यक स्थिति मानता है, लेकिन दोनों ही न्याय को कृत्रिम, परंपरागत मानते है|”


    • प्लेटो द्वारा न्याय के व्यवहारवादी सिद्धांत का खंडन-

    1. न्याय कोई बाहरी तथा कृत्रिम वस्तु नहीं है, जो किसी संविदा से जन्म लेती हो| यह तो एक प्राकृतिक वस्तु है, जो आत्मा का एक आंतरिक गुण है|

    2. न्याय सार्वभौमिक तत्व है जो सबल एवं निर्बल दोनों के लिए है, केवल निर्बल के लिए नहीं|

    3. न्याय का पालन लोग डर से नहीं करते, जबकि स्वस्थ व अच्छे सामाजिक जीवन की प्राप्ति के लिए करते है|


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