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महात्मा गांधीजी के आर्थिक विचार/ Economic thoughts of Mahatma Gandhi || By Nirban PK Yadav Sir || In Hindi

 गांधीजी के आर्थिक विचार- 

  • गांधीजी के आर्थिक विचारों को ‘गांधीवादी अर्थशास्त्र’ कहा जाता है|

  • गांधीजी ने अपने आर्थिक विचारों को ‘मानवीय अर्थशास्त्र’ (होमो इकोनॉमिक्स) कहा है|


गांधीजी के आर्थिक विचार निम्न है-

  1. नीतिशास्त्र का नियंत्रण-

  • गांधीजी अर्थशास्त्र पर नीतिशास्त्र का नियंत्रण स्थापित करना चाहता है|


  1. आर्थिक समानता-

  • गांधीजी आर्थिक समानता पर बल देता है| 

  • आर्थिक समानता का अर्थ “सभी व्यक्तियों की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए|”

  • गांधीजी “मेरे ख्याल में हिंदुस्तान और सारे संसार की अर्थव्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें बिना खाने और बिना कपड़े के कोई भी रह न पाए|” 


  1. आर्थिक न्याय का सिद्धांत-

  • यह सिद्धांत आर्थिक समानता का पूरक है| 

  • प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति हो सके, इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति के निम्न नैतिक कर्तव्य है-

  1. केवल शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका का अर्जन करना|

  2. व्यक्ति को अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को यथासंभव सीमित रखना|

  3. अस्तेय व्रत का पालन करना|

  4. अपरिग्रह व्रत का पालन करना| 


  1. मशीनीकरण का विरोध-

  • गांधीजी ने नैतिक एवं आर्थिक आधार पर मशीनीकरण का विरोध किया है|

  • गांधीजी के अनुसार “मशीनीकरण सांप की बाँवी (पिटारी) की तरह है, जिसमें एक से लेकर सैकड़ों सांप हो सकते हैं| जहां मशीनें होती हैं, वहां बड़े शहर, ट्राम, रेले और बिजली की रोशनी होती है|” 

  • गांधीजी के अनुसार मशीनीकरण के निम्न दोष हैं- 

  1. मशीनों ने मानव श्रम का स्थान ले लिया है|

  2. मनुष्य, मशीनों पर निर्भर हो गया है|

  3. मशीनों से मानव की वैयक्तिकता और उसकी सामुदायिकता की भावना नष्ट हो रही है|

  4. मशीनों से समाज में असंतोष, हिंसा, संघर्ष की प्रवृत्ति को बल मिला है|


  • गांधीजी पुंज उत्पादन (Mass Production) के बजाय जनपूंज उत्पादन (Production by mass) के समर्थक थे| 


  1. औद्योगिकरण पर विचार

  • गांधीजी ने बड़े उद्योगो का विरोध किया है, क्योंकि औद्योगिकरण से बेरोजगारी व केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ती है|

  • गांधीजी के मत में कुटीर उद्योगों से ही विकेंद्रित अर्थव्यवस्था और विकेंद्रित समाज की रचना संभव हो सकती है|

  • गांधीजी के मत में लघु उद्योग हमें प्रौद्योगिकी की बुराई से बचाने के अलावा त्वरित रोजगार भी उपलब्ध कराएंगे|

  • अर्थात गांधीजी ने केंद्रीयकरण का विरोध किया है तथा विकेंद्रीकरण का समर्थन किया है|

  • गांधीजी ने स्वदेशी का समर्थन किया है|


  1. रेलवे व्यवस्था पर विचार-

  • गांधीजी ने रेलवे को अस्वीकार किया है, जो उनके अनुसार समाज में नैतिक दुराचार के विस्तार का माध्यम बन गया था|

  • गांधीजी का मत था कि भारत में रेलवे की स्थापना सार्वजनिक हित के लिए नहीं हुई है, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद की नींव मजबूत करने के लिए हुई है| 


  1. रोटी के लिए शारीरिक श्रम का सिद्धांत-

  • गांधीजी ने श्रम पर बहुत अधिक बल दिया है, उनके अनुसार श्रम वास्तविक धन है, जो धन को जन्म देता है| धन का स्वामी वह है, जो उत्पादकता के साथ निश्चित मात्रा में अपना श्रम लगाता है|

  • गांधीजी के मत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका का उपार्जन शारीरिक श्रम के द्वारा ही करना चाहिए| इसे गांधीजी ने ‘पसीने की रोटी’ कहा है|


  1. न्यायसिता/ ट्रस्टीशिप/ प्रन्यास/ संरक्षता का सिद्धांत -

  • गांधीजी आर्थिक समानता की स्थापना के लिए ट्रस्टीशिप सिद्धांत का समर्थन करता है| वह पूंजीपतियों के ह्रदय परिवर्तन की बात करता है| उसके अनुसार व्यक्ति की संपत्ति समाज की देन है व धनी व्यक्ति संपत्ति का केवल ट्रस्टी (संरक्षक) होता है|

  • पूंजीपति संपत्ति को संपूर्ण समाज की धरोहर मानकर उसका प्रयोग लोक कल्याण के लिए करें| तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक धन को गरीबों में बांट दें|

  • गांधीजी हिंसा द्वारा पूंजीपतियों को समाप्त करने के पक्ष में नहीं है| गांधीजी ने लिखा है कि “यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि राज्य हिंसा द्वारा पूंजीवाद का दमन करता है, तो वह स्वयं हिंसा की कुंडली में फंस जाएगा और फिर कभी अहिंसा का विकास करने में सफल नहीं होगा|” 


  1. अपरिग्रह का सिद्धांत

  • व्यक्ति को सामाजिक संपदा से उतना ही ग्रहण करना चाहिए, जितना उसकी तत्कालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनिवार्य हो| 


  1. अस्तेय का सिद्धांत-

  • यह नियम अपरिग्रह का पूरक है| अस्तेय का अर्थ- ‘चोरी न करना है|’ अर्थात मनुष्य को कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं रखनी चाहिए|


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