महात्मा गांधीजी का जीवन परिचय-
जन्म- 2 अक्टूबर 1869 में, काठियावाड़ गुजरात के पोरबंदर (सुदामापुरी) नामक स्थान पर एक धार्मिक विचारधारा वाले परिवार में|
पूरा नाम- मोहनदास कर्मचंद गांधी
माता का नाम- पुतली बाई
पिता- करमचंद उत्तमचंद गांधी (उर्फ काबा गांधी), जो क्रमशः पोरबंदर, राजकोट, वंकानेर राज्य के दीवान रहे|
महात्मा गांधी आधुनिक भारत के महान जननायक, समाज-सुधारक, नैतिक दार्शनिक थे|
1876 में गांधीजी अपने माता-पिता के साथ राजकोट चले गए, जहां उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई और यही इनकी सगाई कस्तूरबा के साथ हो गई तथा 1883 में गांधीजी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हो गया|
1887 में गांधीजी बैरिस्टर की शिक्षा के लिए लंदन चले गये| विदेश जाने से पहले गांधीजी ने अपनी माता पुतलीबाई के समक्ष प्रतिज्ञा ली कि “मैं शराब, मांस तथा नारी का सेवन नहीं करूंगा|”
बैरिस्टर के शिक्षा इंग्लैंड के टेंपल इन से प्राप्त की|
गांधीजी 10-11 जून 1891 को लंदन से लौटे तथा उन्होंने अपना व्यवसायिक जीवन 1891 में बैरिस्टर के रूप में प्रारंभ किया| काठियावाड़ व बम्बई में वकालत की|
1893 में दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी के मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गये|
दक्षिण अफ्रीका में नटाल के सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत किए जाने वाले प्रथम भारतीय महात्मा गांधी थे|
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी को रंग-भेद की नीति का सामना करना पड़ा|
जब गांधीजी ने समाचार पत्रों में पढ़ा कि नेटाल सरकार भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने के लिए कानून बनाने वाली है, तब रंगभेद की नीति के खिलाफ आवाज उठाने के उद्देश्य से 22 अगस्त 1894 को दक्षिणी अफ्रीका में ‘नटाल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना की|
1899 में बोअर युद्ध के समय इंडियन एंबुलेंस कोर का गठन किया, जिसने युद्ध में उल्लेखनीय सेवा कार्य किए किया और उसके उपलक्ष में गांधीजी को बोअर युद्ध पदक प्रदान किया|
गांधीजी ने 1904 में जोहांसबर्ग के डरबन शहर में आदर्श कृषि बस्ती तथा ‘फिनिक्स आश्रम’ की स्थापना की| फिनिक्स आश्रम गांधीजी का पहला आश्रम था, जहां प्रत्येक आश्रमवासी को अपने हाथ से काम करते हुए व्यक्तिगत श्रम और सहयोग के आधार पर काम करना पड़ता था|
1906 में जोहांसबर्ग में गांधीजी ने एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट (इस क़ानून के तहत भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य कर दिया गया था) के विरुद्ध ‘सत्याग्रह’ का पहली बार प्रयोग किया|
1906 में गांधीजी ने जुलू विद्रोह के समय ‘इंडियन स्ट्रेचर बेअरर कोर’ की स्थापना की| इसी कारण इनको अंग्रेजों द्वारा जुलू विद्रोह पदक प्रदान किया गया|
1910 में टॉलस्टॉय फार्म की स्थापना ट्रांसवाल, दक्षिण अफ्रीका में की|
9 जनवरी 1915 को गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत लौटे| इसी कारण 9 जनवरी को प्रवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है|
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी ने अंग्रेजो के प्रति सहयोग की नीति अपनाई थी| इसी कारण 1915 में अंग्रेजों ने गांधीजी को ‘केसर ए हिंद स्वर्ण पदक’ प्रदान किया|
25 मई 1915 को साबरती आश्रम की स्थापना अहमदाबाद में कोचरब नामक स्थान पर की| जुलाई 1917 को इसे साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित किया गया|
फरवरी 1916 में गांधीजी ने भारत में पहली सार्वजनिक सभा के तहत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन में भाग लिया|
भारत में ‘सत्याग्रह’ का सर्वप्रथम प्रयोग गांधीजी ने 1917 में चंपारण (बिहार) में किया| यह सत्याग्रह नील की खेती करने वाले भारतीय कृषकों पर अंग्रेजो द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध किया गया था| यह सत्याग्रह गांधीजी ने राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर किया था| यह प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन था|
सन 1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरो के लिए अहिंसक आंदोलन (प्लेग बोनस को लेकर) चलाया| यह गांधीजी की प्रथम भूख हड़ताल थी| इस समय गांधीजी गुजरात किसान संघ के अध्यक्ष थे|
1918 में खेड़ा जिले गुजरात में ‘कर न दो’ आंदोलन चलाया| यह गांधीजी का प्रथम असहयोग आंदोलन था|
खिलाफत आंदोलन (1919- 1922) का समर्थन किया|
फरवरी 1919 में गांधीजी ने रोलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह की प्रतिज्ञा की| 1919 में रोलेट एक्ट के विरोध स्वरूप केसर ए हिंद, बोअर युद्ध व जुलू विद्रोह पदक लौटा दिए|
रोलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 देशव्यापी हड़ताल हुई तथा भारतव्यापी सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया गया| 13 अप्रैल अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ तथा 18 अप्रैल को सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया गया| यह प्रथम जन आंदोलन था|
1920 में तिलक की मृत्यु के बाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर गांधीजी के हाथों में आयी|
1920 में असहयोग आंदोलन चलाया| लेकिन 5 फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चोरा चोरी नामक स्थान पर हुए हिंसक आंदोलन के कारण असहयोग आंदोलन वापस ले लिया|
नवंबर 1920 में गांधीजी ने अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की|
मार्च 1922 में गांधीजी द्वारा यंग इंडिया समाचार पत्र में प्रकाशित लेखों को आधार बनाकर सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया और 6 वर्ष का कारावास हुआ तथा उन्हें यरवदा जेल में रखा, जहां से 1924 में रिहा किया गया|
गांधीजी ने दिसंबर 1924 में केवल एक बार बेलगांव सम्मेलन में कांग्रेस की अध्यक्षता की|
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने 78 अनुयायियों के साथ नमक कानून बंद करने व पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति करने के लिए दांडी यात्रा प्रारंभ की|
6 अप्रैल 1930 को दांडी में नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया| दांडी यात्रा का आदर्श वाक्य था- ‘अंत तक लड़ो’|
नमक कर की समाप्ति के लिए 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ तथा भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार मिल गया|
गांधी-इरविन समझौते को सरोजिनी नायडू ने ‘दो महात्माओं का मिलन’ कहा तथा KM मुंशी ने ‘युग प्रवर्तन घटना’ कहा|
1931 में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया|
1932 में मैकडोनाल्ड का सांप्रदायिक पंचाट आया| तब मैकडोनाल्ड के सांप्रदायिक पंचाट के विरोध में यरवदा जेल (पुणे) में आमरण अनशन शुरू किया तथा इसी के संबंध में 1932 में गांधीजी व अंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ|
1932 में पूना समझौता के बाद गांधीजी ने जी डी बिरला की अध्यक्षता में अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी संघ बनाया, जो बाद में हरिजन सेवक संघ में बदल गया| अंबेडकर स्वर्ण हिंदुओं की बहुलता की वजह से इस संघ को नापसंद करते थे|
1936 में वर्धा (महाराष्ट्र) में सेवाग्राम की स्थापना की|
1937 में वर्धा शिक्षा योजना प्रारंभ की|
15 अक्टूबर 1940 को गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की, जिसमें विनोबा भावे प्रथम सत्याग्रही बने|
8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने जीवन का अंतिम अहिंसक संघर्ष भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तथा करो या मरो का नारा दिया|
Note- 1920 के असहयोग आंदोलन का नारा था- स्वराज एक वर्ष में, 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन का नारा था- अभी या कभी नहीं|
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी|गांधीजी की मृत्यु पर डॉ.स्टेनले जॉन्स ने कहा कि “हत्यारे की गोलियां महात्मा गांधी और उनके विचारों का अंत करने के लिए चलाई गई थी, परंतु उनका फल यह हुआ कि वे विचार स्वतंत्र हो गए और मानव
वैज्ञानिक आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में कहा है कि “आगे आने वाली पीढ़ियां शायद ही विश्वास कर सकेगी, कि उन जैसे हाड-मास का पुतला कभी इस भूमि पर पैदा हुआ था|”
जाति की थाती बन गए| हत्यारे ने महात्मा गांधी की हत्या करके उन्हें अमर बना दिया| मृत्यु से वे अपने जीवन की अपेक्षा अधिक बलशाली हो गए|”
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि “हमारे जीवन से प्रकाश चला गया|”
गांधीजी को महात्मा की उपाधि रविंद्र नाथ टैगोर तथा राष्ट्रपिता की उपाधि सुभाष चंद्र बोस ने दी थी|
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को बापू की उपाधि दी|
गांधीजी को वन मैन आर्मी माउंटबेटन ने, अर्धनंगा फकीर फ्रैंक मॉरिस ने, देशद्रोही फकीर चर्चिल ने, प्रोफेशनल लीडर रोमा रोला ने कहा|
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