महात्मा गांधीजी की रचनाएं-
हिंद स्वराज-
लेखन 1909, प्रकाशन 1938
हिंद स्वराज में कुल 20 अध्याय हैं|
यह सबसे पहले इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुई, जिसे अंग्रेजों ने यह कहते हुए प्रतिबंधित कर दिया कि इसमें राजद्रोह सामग्री है|
इस पर गांधीजी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद निकाला, ताकि यह बता सके कि इसमें राजद्रोहात्मक सामग्री नहीं है|
इसके बाद 21 दिसंबर 1938 को अंग्रेजों ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध को हटाया| तब हिंद स्वराज पुस्तक अंग्रेजी में Indian Home Rule के नाम से प्रकाशित हुई|
हिंद स्वराज का हिंदी व संस्कृत आदि कई भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है| संस्कृत भाषा में इसका अनुवाद डॉ. प्रवीण पंड्या ने किया है|
इसकी रचना गांधीजी ने लंदन से दक्षिणी अफ्रीका जाते हुए SS कलिन्डन जहाज में की| यह गुजराती भाषा में लिखी गयी है|
गांधीजी पर प्लेटो के संवादों का प्रभाव था, इसी कारण हिंद स्वराज को संवाद शैली में गांधीजी ने लिखा है| इसमें दो पात्र हैं-
पाठक
संपादक
इसमें पाठक (हिंसक राष्ट्रवादी योद्धा) प्रश्न पूछता है तथा गांधीजी संपादक के रूप में उत्तर देते हैं|
इस पुस्तक में गांधीजी ने हिंदुस्तान और दक्षिण अफ्रीका के अराजकतावादी व हिसंक वर्गों को जवाब दिया है|
इसी पुस्तक में लिखा हुआ है कि “स्वराज आपकी मुट्ठी में है|”
इस पुस्तक में गांधीजी ने विशाल उद्योगों, मशीनीकरण, पाश्चात्य सभ्यता, साम्राज्यवाद, धर्मनिरपेक्षता, ब्रिटिश संसद आदि की आलोचना की है|
इस पुस्तक में आधुनिक पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति तथा व्यवस्था, हिंदुस्तान की दशा, बंग भंग, कांग्रेस और उसके कर्ता-धर्ता, हिंसा व अहिंसा, सत्याग्रह तथा भारत को कैसा व कैसे स्वराज मिले आदि प्रश्न प्रमुख है|
इसमें गांधीजी की मानव प्रकृति, स्वराज, सर्वोदय, सत्याग्रह, स्वदेशी, राजनीतिक दायित्व एवं अधिकार, साधन और साध्य तथा आजीविका श्रम आदि अवधारणाएं हैं|
गांधीजी ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है कि “यह किताब द्वेष धर्म की जगह प्रेम धर्म सिखाती है, हिंसा की जगह आत्म बलिदान को रखती है, पशु बल से टक्कर लेने के लिए आत्मबल को खड़ा करती है| यह किताब बालक के हाथ में भी दी जा सकती है|”
इसी पुस्तक में गांधी जी ने कहा है कि “अगर किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह रहो और गिरो तो बीज की तरह गिरो ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए संघर्ष कर सको|”
Note- हिंद स्वराज बिस्मार्क के जर्मनी का समर्थन या पक्षपोषण करता है|
सत्य के साथ मेरे प्रयोग (My Experience With Truth)
1927 में लिखी गयी| यह गांधीजी की आत्मकथा है|
यह पुस्तक भी गुजराती भाषा में लिखी गई है|
आरोग्य दर्शन- जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में फैले प्लेग के समय वहां अस्पताल की स्थापना की| तथा गांधीजी ने आहार विज्ञान पर अनेक लेख गुजराती में लिखे, जो हिंदी में आरोग्य दर्शन नामक पुस्तक में संकलित हो प्रकाशित हुए|
एथिकल रिलिजन
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह
सर्वोदय
रचनात्मक कार्यक्रम
मेरे समकालीन
गीता बोध
गीता की महिमा
गीता-माता
अनासक्ति योग
मंगल प्रभात
अनीति की राह पर
सत्याग्रह
शांति और युद्ध में अहिंसा (Non violence in peace and war)
सांप्रदायिक एकता
सत्य ही ईश्वर है
अस्पृश्यता निवारण
खादी
गोखले माय पॉलीटिकल गुरु
इंडिया ऑफ माय ड्रीम 1947
समाचार पत्र-
इंडियन ओपिनियन- अंग्रेजी भाषा में, फीनिक्स आश्रम, डरबन शहर से प्रकाशन किया
यंग इंडिया- अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक पत्र था|
हरिजन- अंग्रेजी भाषा में
नवजीवन- गुजराती भाषा का मासिक पत्र था
हरिजन सेवक
हरिजन बंधु
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