महात्मा गांधीजी पर प्रभाव-
गांधीजी ने रामायण से मर्यादा एवं सदाचार पूर्ण जीवन, तथा राम राज्य के आदर्श की प्रेरणा ली|
महाभारत से असत्य एवं अनीति पर सदैव सत्य एवं सुनीति की विजय के आदर्श को ग्रहण किया| गांधीजी को गीता का परिचय सर्वप्रथम एडविन अर्नाल्ड के ग्रंथ स्वर्गीय संगीत (Song of Celestial) से मिला|
श्रीमद् भागवद गीता से आत्मा की अमरता तथा निष्काम कर्मयोग की अवधारणाएं ग्रहण की|
पतंजलि योगशास्त्र से पंच यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, तथा अपरिग्रह को ग्रहण किया|
जैनवाद से अहिंसा के आग्रह को ग्रहण किया|
वैष्णववाद से विश्व बंधुत्व के दृष्टिकोण को ग्रहण किया|
उपनिषदो से अपरिग्रह व असंग्रह का विचार लिया
बाइबल से न्याय के लिए अहिंसक संघर्ष की प्रेरणा प्राप्त की| गांधीजी ने लंदन में रहते हुए बाइबिल का अध्ययन किया तथा जिसके अंतर्गत ‘न्यू टेस्टामेंट’ में अहिंसा का प्रतिपादन करते हुए ईसा मसीह द्वारा ‘पर्वत पर दिए गए प्रवचन’ (Sermon on Mount) का उन पर बेहद प्रभाव पड़ा|
बाइबल से ग्रहण किया ‘पाप से घृणा, करो पापी से नहीं|’
गांधीजी यूनानी विचारक प्लेटो व चीनी विचारक ‘लाओत्से तथा कन्फ्यूशियस’ से प्रभावित हुए|
प्लेटो के आदर्शवाद और नैतिक मूल्यों के प्रति सरोकार से बहुत प्रभावित थे| गांधीजी ने प्लेटो की पुस्तक अपोलोजी का गुजराती भाषा में सत्यवान नामक शीर्षक से अनुवाद किया है|
रस्किन और टॉलस्टाय से औद्योगिक सभ्यता के प्रति तिरस्कार के भाव एवं निष्क्रिय प्रतिरोध के विचारों को ग्रहण किया|
जॉन रस्किन की पुस्तक (Unto The Last) में वर्णित वकील के कार्य का वही महत्व है, जो नाई के कार्य का होता है, क्योंकि आजीविका कमाने का हक दोनों का एक सा है, से प्रभावित हुए, तथा इस पुस्तक से तीन आधारभूत निष्कर्ष ग्रहण किये-
व्यक्ति का हित सदैव सार्वजनिक हित में निहित होता है|
समाज की रचना एवं अस्तित्व की दृष्टि से आजीविका के मानसिक साधन व शारीरिक साधन दोनों का समान महत्व है|
जीवन का वास्तविक आनंद केवल शारीरिक श्रम एवं सादगी द्वारा ही प्राप्त हो सकता है तथा मजदूर और किसान का सादा जीवन ही सच्चा जीवन है| (शारीरिक श्रम का महत्व)
सर्वोदय की धारणा भी रस्किन से प्रभावित है|
गांधीजी ने जॉन रस्किन की पुस्तक Unto The Last का अनुवाद गुजराती भाषा में ‘अंतोदय’ शीर्षक से किया|
ईसाई संत व दार्शनिक अराजकतावादी टॉलस्टॉय (पुस्तकें- God within you, What to do और उपन्यास War and Peace) से भी गांधीजी प्रभावित हुए| टॉलस्टॉय की तरह गांधीजी भी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे, अर्थात आदर्श समाज में राज्य को अनिवार्य नहीं मानते थे| गांधीजी को दार्शनिक अराजकतावादी गोपीनाथ धवन ने अपनी पुस्तक The Political Philosophy of Mahatma Gandhi में कहा|
गांधीजी की मानव प्रकृति तथा सत्याग्रह की अवधारणा ईसाई धर्म से प्रभावित थी| हिंदू धर्म की तरह ईसाई धर्म भी घृणा के स्थान पर प्रेम का मार्ग दर्शाता है|
हेनरी डेविड थोरु की पुस्तक ड्यूटी ऑफ सिविल डिसऑबीडिएंस से भी गांधीजी प्रभावित है|
ब्रिटिश आदर्शवादी विचारक टी एच ग्रीन का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा है| गांधीजी, ग्रीन के इस विचार से सहमत थे कि राजनीतिक दायित्व अपने मूल रूप में नागरिकों तथा राज्य के बीच एक पारस्परिक क्रिया है, तथा राजनीतिक दायित्व एक ऐच्छिक क्रिया है| गांधीजी का सर्वोदय ग्रीन के कॉमन गुड अथवा सामान्य कल्याण के सिद्धांत से मिलता जुलता है |
बेंथम व मिल का प्रभाव भी गांधीजी पर दिखता है| बेंथम के इस विचार से गांधीजी सहमत है कि मनुष्य न केवल अन्य प्राणियों की तरह सुख-दुख की अनुभूति कर सकता है, बल्कि उसमें विवेक तथा तर्क करने की क्षमता भी होती है जो उसे अन्य प्राणियों से भिन्न व श्रेष्ठ बनाता है| मिल के इस कथन से भी सहमत हैं, कि ‘सामाजिक हित में व्यक्ति हित भी शामिल होता है|’
रूसो की प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटने की अवधारणा से भी गांधीजी प्रभावित थे| रूसो ने एक शासन मुक्त समाज की कल्पना की है, जिसे रूसो ने मनुष्य की गोल्डन एज अथवा स्वर्ण युग का नाम दिया है, जबकि गांधीजी ने शासन मुक्त समाज को आत्मा का राज्य, परमात्मा का राज्य, सत्य व अहिंसा का राज्य, न्याय का राज्य, रामराज की संज्ञा दी है|
गांधीजी ने निष्क्रिय प्रतिरोध (Passive resistance) का मार्ग आयरलैंड की महिलाओं के सिन-फिन नामक आंदोलन से अपनाया|
गांधीजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा में श्रवण पितृभक्ति नाटक से यह सीखा कि यदि इंसान को किसी की नकल करनी हो तो ऐसे प्रसंगों की करें, जिससे व्यक्ति का नैतिक विकास हो सके|
सत्यवादी हरिश्चंद्र नाटक का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा है|
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