गांधीजी के आध्यात्मिक एवं मानवतावादी विचार-
ईश्वर संबंधी विचार-
गांधीजी के अनुसार ईश्वर ‘आस्तिकों की आस्तिकता’ के साथ ‘नास्तिकों की नास्तिकता’ है|
गांधीजी के शब्दों में “ईश्वर वर्णन से परे ही कोई ऐसी चीज है, जिसे हम अनुभव तो कर सकते हैं, किंतु जान नहीं सकते|”
गांधीजी ने ईश्वर को पूर्ण तथा निर्द्वन्द्व अध्यात्मिक सत्ता माना है|
गांधीजी के शब्दों में ‘सत्य ही ईश्वर है’| उनके अनुसार सत्य और ईश्वर में कोई भेद नहीं था|
गांधीजी के अनुसार “हम हवा और पानी के बिना रह सकते हैं, किंतु ईश्वर के बिना नहीं रह सकते हैं|”
गांधीजी ने ईश्वर को दरिद्रनारायण कहा|
गांधीजी ने ईश्वर का समाजीकरण व मानवीकरण किया|
धर्म संबंधी विचार-
गांधीजी ने धर्म शब्द का उपयोग शाश्वत सत्य, सापेक्षिक सत्य, नैतिक शक्ति, अहिंसा, कर्तव्य, विभिन्न सद्गुण, सदाचारपूर्ण जीवन आदि अर्थों में किया है|
गांधीजी का दृष्टिकोण गहन रूप से धार्मिक था|
गांधीजी ने मानवतावादी धर्म का पोषण किया है
गांधीजी के अनुसार धर्म-
धर्म का स्रोत ईश्वर है|
धर्म का एक सामान्य स्रोत ईश्वर होने के कारण सभी धर्मों के मूल लक्षण समान है|
सत्य और अहिंसा धर्म के आवश्यक लक्षण हैं| जो धर्म सत्य व अहिंसा का विरोधी है, वह धर्म नहीं है|
व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धर्म आत्मज्ञान की प्राप्ति है|
धर्म साधन तथा ईश्वर साध्य है|
गांधीजी ने धर्म व राजनीति को अपृथक्करणीय माना है|
गांधीजी का धर्म मानव सेवा का धर्म था|
गांधीजी “मैं मानव गतिविधि से अलग किसी धर्म को नहीं जानता|”
गांधीजी “मेरे लिए नैतिकता, नीति और धर्म पर्यायवाची पद है, धर्म के बिना नैतिक जीवन उसी प्रकार है, जिस प्रकार रेत पर निर्मित एक भवन|"
धर्म संसार के नैतिक अनुशासन की व्यवस्था है|
मानव संबंधी विचार-
गांधीजी के मानव संबंधी निम्न विचार हैं-
मानव में अच्छाई और बुराई दोनों पाई जाती हैं|
मनुष्य प्रकृति से मूलतः नैतिक एवं अहिंसक प्राणी है|
मनुष्य एक विचारशील व विकासशील प्राणी है, इस दृष्टि से अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है|
सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं|
मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है|
कर्म संबंधी विचार-
व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है|
व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है|
अकर्म की तुलना सद्कर्म सदैव श्रेष्ठ है|
मानव का सर्वोत्तम कर्म आत्म ज्ञान की प्राप्ति करना है
गीता में निहित अनासक्त कर्मयोग सर्वोत्तम कर्म सिद्धांत है|
गांधीजी ने पुनर्जन्म में भी विश्वास किया है| उन्होंने कहा कि “इस सिद्धांत में उतना ही विश्वास है, जितना कि अपने वर्तमान शरीर के अस्तित्व में|”
मानव सेवा संबंधी विचार-
मानव सेवा सर्वोत्तम धर्म है तथा ईश्वर की सेवा है|
लोक सेवा या मानव सेवा का एक विशिष्ट रूप राष्ट्र सेवा है|
लोक सेवा सर्वोदय की पूर्व शर्त है|
साध्य एवं साधन संबंधी विचार-
गांधीजी ने साध्य एवं साधन दोनों कि पवित्रता पर बल दिया है, तथा साध्य से पहले साधन की पवित्रता के आदर्श को स्वीकारा|
गांधीजी “साधन को बीज माना जा सकता है और साध्य को वृक्ष और जैसा बीज बोओगे, वैसा ही वृक्ष होगा|
सत्य संबंधी गांधीजी के विचार-
सत्य गांधीजी के दर्शन का केंद्रीय तत्व है|
गांधीजी ने सत्य के दो प्रकार बताए हैं-
निरपेक्ष सत्य- इसका अर्थ ‘सत्य ही ईश्वर’ है, अर्थात ईश्वर से संबंधित है|
सापेक्ष सत्य- यह मानव के लौकिक जीवन से संबंधित सत्य है|
मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ब्रह्मा अर्थात निरपेक्ष सत्य को जानना है|
गांधीजी “सत्य एक विशाल वृक्ष है, उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है, त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते दिखाई देते है|”
गांधीजी “यह एक बड़ा कठिन प्रश्न है, किंतु स्वयं अपने लिए मैंने इसे हल कर लिया है, तुम्हारी अंतरात्मा जो कहती है, वही सत्य है|”
सत्य को पारस्परिक प्रेम एवं सद्भाव से प्राप्त किया जा सकता है|
गांधीजी “अहिंसा के मार्ग के अलावा सत्य को प्राप्त करने का कोई और मार्ग नहीं है|”
गांधीजी के मत में सत्यपरायण व्यक्ति मन, वचन और आचरण तीनों से सत्य के प्रति समर्पित रहेगा|
अहिंसा संबंधी गांधीजी के विचार-
अहिंसा का अर्थ है- ‘हिंसा का अभाव’
गांधीजी के अनुसार अहिंसा का नकारात्मक अर्थ- “किसी को कभी नहीं मारना, न सताना तथा बुरे विचार, जल्दबाजी, झूठ, घृणा जैसी बुराइयों से दूर रहना|”
जबकि अहिंसा का सकारात्मक अर्थ- “अहिंसा प्रेम की पराकाष्ठा है|” सकारात्मक अहिंसा में मन, वचन, कर्म की अहिंसा तथा सामाजिक भलाई व कल्याण शामिल है|
इस प्रकार गांधीजी अहिंसा को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अर्थों में स्वीकारा है, तथा नकारात्मक अहिंसा के बजाय सकारात्मक अहिंसा पर ज्यादा बल दिया है|
गांधीजी के अनुसार अहिंसा निर्बल व्यक्ति का आश्रय नहीं है, बल्कि शक्तिशाली का अस्त्र है| यह भौतिक शक्ति को अध्यात्मिक शक्ति के आगे झुकाने की कला है|
यदि हिंसा एवं कायरता के बीच चुनाव करना हो तो गांधीजी हमेशा हिंसा का पक्ष लेते थे|
गांधीजी ने अहिंसा के तीन रूप बताएं है-
जागृत अहिंसा- यह अहिंसा का सर्वोत्कृष्ट रूप है| यह बहादुर व्यक्तियों के अहिंसा है| इसमें व्यक्ति में प्रहार की क्षमता होती है पर नैतिक दृढ़ता के कारण ऐसा वह नहीं करता है| प्रबुद्ध अहिंसा वीर पुरुषों की अहिंसा है|
औचित्य पूर्ण अहिंसा- यह असहाय व्यक्तियों के निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति है| इसे व्यवहारिक अहिंसा भी कहा जाता है| यह परिस्थितियों की मांग पर आधारित होती है तथा आवश्यकता पड़ने पर इसमें हिंसा का प्रयोग हो सकता या नीति के रूप में अपनायी जा सकती है|
कायरों की अहिंसा- यह सबसे निकृष्ट अहिंसा है| यह कायर या डरपोक व्यक्तियों की इच्छा है| इसमें कायर व्यक्ति संकट का सामना करने के बजाय भाग जाता है| गांधी के अनुसार कायरो की अहिंसा के बजाय, तो वीरों की हिंसा ज्यादा सही है|
महात्मा गांधी “जिस तरह हिंसा के प्रशिक्षण में मारने की कला सीखनी होती है, उसी तरह अहिंसा के प्रशिक्षण में मरने की कला सीखनी चाहिए|”
गांधीजी की सत्याग्रह की अवधारणा-
सत्याग्रह का अर्थ है- सत्याग्रह में दो शब्द है सत्य और आग्रह| सत्य का अर्थ है- सच्चाई और आग्रह का अर्थ है- हठ, बल, निवेदन अथवा शक्ति| अर्थात सत्याग्रह का अर्थ ‘सत्य के लिए आग्रह करना’ या सत्य पर अडिंग रहना या सच्चाई के लिए हठ, बल, निवेदन, शक्ति का प्रयोग करना|
गांधीजी “विरोधी को पीड़ा में देखकर नहीं, अपितु स्वयं को पीड़ा में डालकर सत्य की रक्षा करना सत्याग्रह है|”
गांधीजी “सत्याग्रह तो बल प्रयोग के सर्वथा विपरीत होता है| हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है|”
गांधीजी “मेरे लिए सत्याग्रह का नियम, प्रेम का नियम है, जो एक शाश्वत नियम है|”
गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सत्य और अहिंसा को व्यवहारिक रूप देने के लिए सत्याग्रह को साधन के रूप में अपनाया है|
गांधीजी ने सत्याग्रह की विधि को स्वराज प्राप्ति के लिए अपनाया|
सत्याग्रह का मतलब है कि अत्याचारी का प्रतिरोध करना, उसके सामने सर को न झुकाना तथा उसकी बात न मानना है, तथा अहिंसा के माध्यम से अत्याचारी का ह्रदय परिवर्तित करना है|
सत्याग्रही के लक्षण-
सत्याग्रह एक आध्यात्मिक अस्त्र है| आदर्श सत्याग्रही के बारे में गांधी का विचार है कि “एक पूर्ण सत्याग्रही को यदि सभी प्रकार पूर्ण नहीं तो, लगभग एक पूर्ण मनुष्य होना चाहिए|”
सत्याग्रह सामाजिक क्रांति का गांधीवादी तरीका है तथा यह सत्य, अहिंसा पर आधारित है|
एक सत्याग्रही के निम्न लक्षण होने चाहिए-
सत्याग्रही को ईश्वर में श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए|
मन, वाणी, कर्म के स्तर पर सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की शक्ति में अडिंग आस्था होनी चाहिए|
आत्म बल होना चाहिए|
पूर्ण अनुशासित होना चाहिए|
आत्म बल एवं अनुशासन के लिए निम्न 11 व्रतों का पालन करना चाहिए- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शारीरिक श्रम, निर्भयता, अस्वाद, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी तथा अस्पृश्यता निवारण|
वीर पुरुष हो, सादगी पूर्ण जीवन हो|
सत्याग्रह के प्रकार या साधन-
असहयोग- इसमें बहिष्कार, धरना, हड़ताल शामिल है|
सविनय अवज्ञा-
गांधीजी के शब्दों में “सविनय अवज्ञा आंदोलन सशस्त्र क्रांति का एक पूर्ण प्रभावशाली एवं रक्तहीन विकल्प है|”
सविनय अवज्ञा आंदोलन का अर्थ ऐसे कानून का उल्लंघन, जो स्वयं अन्यायपूर्ण है|
सविनय अवज्ञा का उद्देश्य सत्ताधारियों का हृदय परिवर्तन करना है|
गांधीजी ने सविनय अवज्ञा की अवधारणा हेनरी डेविड थोरु से ली है|
हिजरत-
इसका अर्थ है- अपने स्थायी व परंपरागत निवास स्थान को छोड़कर अन्य किसी इलाके में जाकर बस जाना| गांधीजी ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए 1928 में बारदोली के सत्याग्रहियो को, 1935 में केंथा के हरिजनों को, 1939 में लंबडी, विट्ठलगढ़ एवं जूनागढ़ की जनता को हिजरत के साधन अपनाने की सलाह दी थी|
उपवास या अनशन-
गांधीजी ने उपवास को सत्याग्रह का सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक अस्त्र माना है|
स्वराज पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी के अनुसार स्वराज्य का अर्थ- विदेशी शासन से राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक स्वाधीनता प्राप्त करना है| यदि कोई समाज राजनीतिक दृष्टि से तो स्वाधीन है, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से पराधीन है तो वह स्वाधीन होते हुए भी स्वराज्य विहीन होगा|
गांधीजी के मत में ‘स्वराज्य’ सच्चे लोकतंत्र का पर्याय था| उनके अनुसार स्वराज तब आएगा, जब कही भी सत्ता का दुरुपयोग होने पर सब लोग उसका विरोध करना सीख जाएंगे|
व्यक्ति के स्तर पर स्वराज्य का अर्थ व्यक्ति का अपने ऊपर पूर्ण नियंत्रण होना|
गांधीजी के मध्य में स्वराज के चार पहलू हैं तथा एक भी पहलू नहीं होगा तो स्वराज अपना स्वरूप खो देगा| ये चार पहलू निम्न है-
राजनीतिक स्वराज
आर्थिक स्वराज
नैतिक स्वराज
सामाजिक स्वराज
सर्वोदय पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी ने सर्वोदय की प्रेरणा जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अन टू द लास्ट’ (1860) से ग्रहण की है|
सर्वोदय का अर्थ है ‘सबका उदय’
गांधीजी सर्वोदय में निम्न वर्गों के कल्याण पर बल देता है तथा ऐसी व्यवस्था की कल्पना करता है, जिसमें धनवान वर्ग स्वेच्छा से अपना धन निर्धन वर्ग के कल्याण के लिए समर्पित कर देगा और इसमें सभी का उत्थान होगा| अर्थात सर्वोदय वर्ग सहयोग पर बल देता है|
सर्वोदय को ‘गांधियन समाजवाद’ भी कहा जाता है, जिसका आधार है- ट्रस्टीशिप का सिद्धांत|
Social Plugin