कौटिल्य के अनुसार सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था-
अर्थशास्त्र में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था से संबंधित प्रशासनिक प्रणाली का वर्णन किया है|
राजा या स्वामी- यह प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी था, जो सैद्धांतिक रूप से संपूर्ण प्रशासन का नियंत्रण करता था|
मंत्री एवं अमात्य- ये प्रशासन की नीतियों के निर्माण में तथा नीतियों को लागू करने में राजा के प्रमुख सहायक होते थे|
इस प्रकार प्रशासन की संपूर्ण सत्ता राजा, मंत्री एवं अमात्य में निवास करती थी, और ये ही प्रशासनिक कार्यों के लिए उत्तरदायी माने जाते थे|
राज्य कर्मचारियों का वर्गीकरण-
कौटिल्य ने सरकार के कुल 34 भाग बताए है|
कौटिल्य ने 18 तीर्थ व 26 विभागाध्यक्ष बताए है|
कौटिल्य ने समस्त कर्मचारियों की चार श्रेणियां बताई हैं-
तीर्थ- सर्वोच्च स्तर कुल 18
विभागाध्यक्ष- तीर्थों के निर्देशन व नियंत्रण के काम करने वाले अमात्य (कुल 26)
प्रमुख सहायक कर्मचारी- विभागाध्यक्ष के अधीन कार्य करने वाले कर्मचारी
हीन कर्मचारी- सबसे नीचे स्तर के कर्मचारी, जो प्रमुख सहायक कर्मचारियों के अधीन कार्य करते हैं|
अष्टादश तीर्थ-
कौटिल्य ने प्रशासन के सफल संचालन के लिए संपूर्ण प्रशासन को कुल 18 तीर्थों (अधिकारियों) में बांटा है, जो निम्न है-
महामात्य/ मंत्री- यह राजा को मंत्रणा देता है|
पुरोहित- यह राजा को धर्म व नीति संबंधी परामर्श देता है|
यह राजा को नैतिक जीवन व्यतीत करने में मदद देता था|
सेनापति- यह सेना का सर्वोच्च अधिकारी था|
युवराज- यह राजा का ज्येष्ठ अथवा कोई अन्य पुत्र होता था, जिसे राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था|
दौवारिक- यह राजमहल की रक्षा व्यवस्था की देख-रेख करने वाला प्रधान अधिकारी होता था|
अंतर्वेशिक (अंतरवंशिक)- यह अंतः पुर की रक्षा व्यवस्था का प्रधान अधिकारी होता था, और राजवंश के गृह-कार्यों का भी प्रबंध देखता था|
प्रशास्त/ प्रशास्ता- यह कारागार का प्रधान अधिकारी होता था|
समाहर्ता- यह राज्य के आय-व्यय की देखरेख करने वाला प्रधान अधिकारी था| वह करो का संग्रह करता था और जनपद में शांति व्यवस्था भी स्थापित करता था|
सन्निधाता- यह राज-कोष का प्रधान अधिकारी होता था|
प्रदेष्टा- यह फौजदारी न्यायालय (कंटक शोधन) का सर्वोच्च न्यायधीश होता था| इसका कार्य न्याय कार्य के अलावा राजकीय कर्मचारियों के आचरण पर नजर रखना तथा भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करना भी था|
नायक- यह पैदल सेना का प्रधान अधिकारी होता था|
पौर- यह नगर प्रशासन का प्रधान अधिकारी था|
व्यवहारिक (धर्मस्थ)- यह धर्मस्थीय न्यायालय का प्रधान न्यायधीश था|
कर्मान्तिक- यह खानो तथा उद्योगों का प्रधान अधिकारी था|
आटविक- राज्य की वन संपदा की देख-रेख व प्रबंध करने वाला अधिकारी|
दंडपाल- सेना का भरण-पोषण करने वाले प्रधान अधिकारी
दुर्गपाल- राज्य में स्थित सभी दुर्गों का प्रधान अधिकारी|
अंतपाल (राष्ट्रांतपाल)- राज्य की सीमा की रक्षा करने वाला प्रधान अधिकारी और सीमा स्थित दुर्गों का भी प्रधान होता था|
विभिन्न विभागाध्यक्ष-
तीर्थों के अंतर्गत विभिन्न प्रशासनिक विभागों की स्थापना की गई| प्रत्येक विभाग का प्रमुख अधिकारी, अध्यक्ष होता था, जो तीर्थ के नियंत्रण व निर्देशन में कार्य करता था|
प्रमुख विभागाध्यक्ष-
हस्ताध्यक्ष- गज सेना का अध्यक्ष
अश्वाध्यक्ष- अश्व सेना का अध्यक्ष
रथाध्यक्ष- रथ सेना का अध्यक्ष
पत्याध्यक्ष- पैदल सेना का अध्यक्ष
नौकाध्यक्ष- नौका विभाग का प्रमुख अधिकारी
देवताध्यक्ष- देवालय विभाग का अध्यक्ष
अक्षपटलाध्यक्ष- राज्य के लेखा विभाग का अध्यक्ष
पण्याध्यक्ष- व्यापार एवं क्रय-विक्रय विभाग का अध्यक्ष
पौतवाध्यक्ष (यौतवाध्यक्ष)- माप-तौल विभाग का अध्यक्ष
कुप्याध्यक्ष- राज्य के वन-विभाग का अध्यक्ष
मानाध्यक्ष- भूमि एवं काल (कैलेंडर) के माप विभाग का अध्यक्ष
शुल्काध्यक्ष- शुल्क विभाग का अध्यक्ष
सूत्राध्यक्ष- वस्त्र एवं कवच (चमड़े के कवच) विभाग का अध्यक्ष
सीताध्यक्ष- कृषि विभाग का अध्यक्ष
सुराध्यक्ष- आबकारी विभाग का अध्यक्ष
सूनाध्यक्ष- पशु वधशाला (बूचड़खाना) विभाग का अध्यक्ष
गणिकाध्यक्ष- वेश्याओं एवं नर्तकियों से संबंधित विभाग का अध्यक्ष
गौ-अध्यक्ष- राज्य के पशु विभाग का अध्यक्ष
मुद्राध्यक्ष- यह राज्य के आवागमन विभाग का अध्यक्ष है| यह राज्य में आने वाले अथवा राज्य से बाहर जाने वाले व्यक्तियों को मुद्रा से अंकित पहचान पत्र प्रदान करता था|
विविताध्यक्ष- चारागाह विभाग का अध्यक्ष
कोषाध्यक्ष- राज्य के कोषग्रह का अध्यक्ष
आयुधगाराध्यक्ष- यह राज्य के अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण एवं उनके भंडार का प्रबंध करने वाला सर्वोच्च अधिकारी
स्वर्णाध्यक्ष- सोने की खानों के प्रबंधन से संबंधित अधिकारी
लक्षणाध्यक्ष- टकसाल विभाग का अध्यक्ष
आकराध्यक्ष- राज्य के खनिज विभाग का अध्यक्ष
मंत्रीपरिषदाध्यक्ष- कौटिल्य ने इसके कार्यों का उल्लेख नहीं किया है| अनुमानत: वह या तो मंत्रिपरिषद के सचिव के रूप में कार्यकर्ता होगा या प्रधानमंत्री ही मंत्रीपरिषदाध्यक्ष होता होगा|
कौटिल्य की प्रशासनिक व्यवस्था की विशेषता-
कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रशासनिक व्यवस्था प्रजा-कल्याणकारी राज्य व्यवस्था की अवधारणा के अनुरूप है| कौटिल्य ने प्रशासन में पद-सोपान की व्यवस्था स्वीकारी है| कर्मचारियों के चयन, पदोन्नति, आचार संहिता आदि की विस्तृत व्यवस्था स्वीकारी है|
डॉ. बेनी प्रसाद “अर्थशास्त्र में वर्णित प्रशासनिक व्यवस्था हिंदू राज्यशास्त्र के साहित्य में सर्वोत्कृष्ट हैं, जिसमें किसी प्रकार की कमी नहीं रह गई है|”
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