Ad Code

कौटिल्य के अनुसार सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था/ General Administrative System according to Kautilya || By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

     कौटिल्य के अनुसार सामान्य प्रशासनिक व्यवस्था- 


    • अर्थशास्त्र में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था से संबंधित प्रशासनिक प्रणाली का वर्णन किया है|

    • राजा या स्वामी- यह प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी था, जो सैद्धांतिक रूप से संपूर्ण प्रशासन का नियंत्रण करता था|

    • मंत्री एवं अमात्य- ये प्रशासन की नीतियों के निर्माण में तथा नीतियों को लागू करने में राजा के प्रमुख सहायक होते थे|

    • इस प्रकार प्रशासन की संपूर्ण सत्ता राजा, मंत्री एवं अमात्य में निवास करती थी, और ये ही प्रशासनिक कार्यों के लिए उत्तरदायी माने जाते थे|


    राज्य कर्मचारियों का वर्गीकरण-

    • कौटिल्य ने सरकार के कुल 34 भाग बताए है|

    • कौटिल्य ने 18 तीर्थ व 26 विभागाध्यक्ष बताए है| 

    • कौटिल्य ने समस्त कर्मचारियों की चार श्रेणियां बताई हैं-

    1. तीर्थ- सर्वोच्च स्तर कुल 18

    2. विभागाध्यक्ष- तीर्थों के निर्देशन व नियंत्रण के काम करने वाले अमात्य (कुल 26)

    3. प्रमुख सहायक कर्मचारी- विभागाध्यक्ष के अधीन कार्य करने वाले कर्मचारी

    4. हीन कर्मचारी- सबसे नीचे स्तर के कर्मचारी, जो प्रमुख सहायक कर्मचारियों के अधीन कार्य करते हैं|


    अष्टादश तीर्थ- 

    • कौटिल्य ने प्रशासन के सफल संचालन के लिए संपूर्ण प्रशासन को कुल 18 तीर्थों (अधिकारियों) में बांटा है, जो निम्न है- 

    1. महामात्य/ मंत्री- यह राजा को मंत्रणा देता है|

    2. पुरोहित- यह राजा को धर्म व नीति संबंधी परामर्श देता है|

    यह राजा को नैतिक जीवन व्यतीत करने में मदद देता था|

    1. सेनापति- यह सेना का सर्वोच्च अधिकारी था|

    2. युवराज- यह राजा का ज्येष्ठ अथवा कोई अन्य पुत्र होता था, जिसे राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था|

    3. दौवारिक- यह राजमहल की रक्षा व्यवस्था की देख-रेख करने वाला प्रधान अधिकारी होता था|

    4. अंतर्वेशिक (अंतरवंशिक)- यह अंतः पुर की रक्षा व्यवस्था का प्रधान अधिकारी होता था, और राजवंश के गृह-कार्यों का भी प्रबंध देखता था|

    5. प्रशास्त/ प्रशास्ता- यह कारागार का प्रधान अधिकारी होता था|

    6. समाहर्ता- यह राज्य के आय-व्यय की देखरेख करने वाला प्रधान अधिकारी था| वह करो का संग्रह करता था और जनपद में शांति व्यवस्था भी स्थापित करता था|

    7. सन्निधाता- यह राज-कोष का प्रधान अधिकारी होता था|

    8. प्रदेष्टा- यह फौजदारी न्यायालय (कंटक शोधन) का सर्वोच्च न्यायधीश होता था| इसका कार्य न्याय कार्य के अलावा राजकीय कर्मचारियों के आचरण पर नजर रखना तथा भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करना भी था|

    9. नायक- यह पैदल सेना का प्रधान अधिकारी होता था|

    10. पौर- यह नगर प्रशासन का प्रधान अधिकारी था|

    11. व्यवहारिक (धर्मस्थ)- यह धर्मस्थीय न्यायालय का प्रधान न्यायधीश था|

    12. कर्मान्तिक- यह खानो तथा उद्योगों का प्रधान अधिकारी था|

    13. आटविक- राज्य की वन संपदा की देख-रेख व प्रबंध करने वाला अधिकारी|

    14. दंडपाल- सेना का भरण-पोषण करने वाले प्रधान अधिकारी

    15. दुर्गपाल- राज्य में स्थित सभी दुर्गों का प्रधान अधिकारी|

    16. अंतपाल (राष्ट्रांतपाल)- राज्य की सीमा की रक्षा करने वाला प्रधान अधिकारी और सीमा स्थित दुर्गों का भी प्रधान होता था| 



    विभिन्न विभागाध्यक्ष

    • तीर्थों के अंतर्गत विभिन्न प्रशासनिक विभागों की स्थापना की गई| प्रत्येक विभाग का प्रमुख अधिकारी, अध्यक्ष होता था, जो तीर्थ के नियंत्रण व निर्देशन में कार्य करता था|


    • प्रमुख विभागाध्यक्ष

    1. हस्ताध्यक्ष- गज सेना का अध्यक्ष

    2. अश्वाध्यक्ष- अश्व सेना का अध्यक्ष

    3. रथाध्यक्ष- रथ सेना का अध्यक्ष

    4. पत्याध्यक्ष- पैदल सेना का अध्यक्ष

    5. नौकाध्यक्ष- नौका विभाग का प्रमुख अधिकारी

    6. देवताध्यक्ष- देवालय विभाग का अध्यक्ष

    7. अक्षपटलाध्यक्ष- राज्य के लेखा विभाग का अध्यक्ष

    8. पण्याध्यक्ष- व्यापार एवं क्रय-विक्रय विभाग का अध्यक्ष

    9. पौतवाध्यक्ष (यौतवाध्यक्ष)- माप-तौल विभाग का अध्यक्ष

    10. कुप्याध्यक्ष- राज्य के वन-विभाग का अध्यक्ष

    11. मानाध्यक्ष- भूमि एवं काल (कैलेंडर) के माप विभाग का अध्यक्ष

    12. शुल्काध्यक्ष- शुल्क विभाग का अध्यक्ष

    13. सूत्राध्यक्ष- वस्त्र एवं कवच (चमड़े के कवच) विभाग का अध्यक्ष

    14. सीताध्यक्ष- कृषि विभाग का अध्यक्ष

    15. सुराध्यक्ष- आबकारी विभाग का अध्यक्ष 

    16. सूनाध्यक्ष- पशु वधशाला (बूचड़खाना) विभाग का अध्यक्ष

    17. गणिकाध्यक्ष- वेश्याओं एवं नर्तकियों से संबंधित विभाग का अध्यक्ष 

    18. गौ-अध्यक्ष- राज्य के पशु विभाग का अध्यक्ष

    19. मुद्राध्यक्ष- यह राज्य के आवागमन विभाग का अध्यक्ष है| यह राज्य में आने वाले अथवा राज्य से बाहर जाने वाले व्यक्तियों को मुद्रा से अंकित पहचान पत्र प्रदान करता था|

    20. विविताध्यक्ष- चारागाह विभाग का अध्यक्ष 

    21. कोषाध्यक्ष- राज्य के कोषग्रह का अध्यक्ष

    22. आयुधगाराध्यक्ष- यह राज्य के अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण एवं उनके भंडार का प्रबंध करने वाला सर्वोच्च अधिकारी

    23. स्वर्णाध्यक्ष- सोने की खानों के प्रबंधन से संबंधित अधिकारी

    24. लक्षणाध्यक्ष- टकसाल विभाग का अध्यक्ष

    25. आकराध्यक्ष- राज्य के खनिज विभाग का अध्यक्ष 

    26. मंत्रीपरिषदाध्यक्ष- कौटिल्य ने इसके कार्यों का उल्लेख नहीं किया है| अनुमानत: वह या तो मंत्रिपरिषद के सचिव के रूप में कार्यकर्ता होगा या प्रधानमंत्री ही मंत्रीपरिषदाध्यक्ष होता होगा|


    Note- कौटिल्य ने प्रशासन के सफल संचालन के लिए आचार संहिता का भी उल्लेख किया है|


    Note- कौटिल्य ने कहा है कि “जिस तरह यह पता लगाना कठिन है की मछली कब पानी पी जाती है, उसी तरह यह पता लगाना भी कठिन है कि अर्थ (धन) कार्य पर नियुक्त कर्मचारी कब धन का हरण कर ले|” कौटिल्य ने राजद्रव्य (धन) के हरण करने के 40 तरीके बताए हैं|



    कौटिल्य की प्रशासनिक व्यवस्था की विशेषता-

    • कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रशासनिक व्यवस्था प्रजा-कल्याणकारी राज्य व्यवस्था की अवधारणा के अनुरूप है| कौटिल्य ने प्रशासन में पद-सोपान की व्यवस्था स्वीकारी है| कर्मचारियों के चयन, पदोन्नति, आचार संहिता आदि की विस्तृत व्यवस्था स्वीकारी है|


    • डॉ. बेनी प्रसाद “अर्थशास्त्र में वर्णित प्रशासनिक व्यवस्था हिंदू राज्यशास्त्र के साहित्य में सर्वोत्कृष्ट हैं, जिसमें किसी प्रकार की कमी नहीं रह गई है|”


    Close Menu