कौटिल्य के मंत्रिमंडल के संबंध में विचार-
कौटिल्य ने राज्य-कार्य के सफल संचालन के लिए मंत्रियों की आवश्यकता एवं महत्व को स्वीकारा है|
मंत्रिमंडल का संगठन-
सदस्य संख्या-
राजा अपनी आवश्यकतानुसार मंत्रियों की संख्या निश्चित करें (सदस्य संख्या निश्चित नहीं)
किंतु कम से कम 5 मंत्री होने चाहिए
राजा को तीन या चार मंत्रियों से गुप्त मंत्रणा करनी चाहिए|
मंत्रिमंडल के प्रकार- कौटिल्य ने दो प्रकार की मंत्रिपरिषद बतायी है-
मंत्रीपरिषद- एक बड़ी संस्था, सभी मंत्री मंत्रीपरिषद सदस्य होते हैं|
मंत्रपरिषद- एक छोटी संस्था, जिसके 3 या 4 सदस्य होते हैं, जिनसे राजा गुप्त मंत्रणा करता है| यह एक अधिक शक्तिशाली संस्था है|
चार मुख्य मंत्रिपरिषद के सदस्य-
महामात्य/ मंत्री- यह राजा को मंत्रणा देता है|
पुरोहित- यह राजा को धर्म व नीति संबंधी परामर्श देता है| यह राजा को नैतिक जीवन व्यतीत करने में मदद देता था|
सेनापति- यह सेना का सर्वोच्च अधिकारी था|
युवराज- यह राजा का ज्येष्ठ अथवा कोई अन्य पुत्र होता था, जिसे राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित
मंत्री पद पर सभी विधाओं में उत्तीर्ण अमात्य को पदोन्नत किया जाता था|
मंत्री अमात्य/ महामात्र- यह सभी मंत्रियों से श्रेष्ठ होता था तथा आधुनिक प्रधानमंत्री पद के समान था|
मंत्रियों का कार्यकाल राजा की कृपा पर निर्भर था|
वेतन- प्रधानमंत्री/ महामात्र/ मंत्री अमात्य को 48000 पण वार्षिक तथा अन्य मंत्रियों को 12000 पण वार्षिक
मंत्रीपरिषद के कार्य-
राज्य के आंतरिक व बाह्य विषयों पर विचार करना|
राजा को परामर्श देना|
राज्य कार्यों को लागू करना, पूर्ण करना, समीक्षा करना|
राजा व राज्य के समस्त गुप्त भेदो की रक्षा करना|
ऐसे प्रयत्न करना कि राजा, राज्य कर्तव्य से विमुख ना हो|
Note- कौटिल्य मंत्रियों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर करने के पक्ष में है, ना कि वंश परंपरा के आधार पर|
Note- मंत्रीपरिषद का कार्य केवल विशेषज्ञ राय देना था, इनकी सलाह राजा के लिए बाध्यकारी नहीं थी|
Note- कौटिल्य मंत्रणा की गोपनीयता पर विशेष बल देता है| कौटिल्य मंत्रणा स्थल के आसपास स्त्रियों, पशु-पक्षियों को दूर रखने की कहता है|
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